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सम्यक्त्व प्रकरणम्
उदायन राजा की कथा हुआ? वह निम्न कथा के द्वारा कहा जाता है
|| उदायन राजा की कथा ।। हमेशा से समुद्र की लहरों रूपी भुजाओं से मित्र की तरह आवेष्टित जम्बूद्वीप यहाँ शाश्वत है। उस जम्बूद्वीप में संपूर्ण सम्पदाओं से युक्त भरतक्षेत्र है जो कि दक्षिण में किसी वधू के ललाट पर अर्धचन्द्राकार तिलक की आकृति के समान है। भरतक्षेत्र में कुण्डलरूप सिन्धुसौवीर मण्डल है। वहाँ बड़े-बड़े गाँव स्वर्णमय एवं उद्यान मौतिकमय शोभित होते हैं। उस सिन्धुसौवीर मण्डल में, अतीतभयवाला वीतभय नामक पत्तन है। जैसे पिता का घर कल्याणकारी होता है, वैसे ही यह पत्तन भी कल्याण का रखवाला है। जहाँ गृहस्थों को, विनाश के भय से पहले ही, एकता की शिक्षा दी जाती है। निश्चय ही अभी भी सूर्य ने दक्षिणोत्तर आयन का त्याग नहीं किया है। व्यापार के अनुरागी पुर के पुरुष व स्त्रियाँ देव जनित आनन्द का उपभोग करते हुए अत्यधिक कल्याण को प्राप्त होते हैं। जहाँ मन्दिरों से निकलते हुए धूप के धुएँ का गुबार आकाश में ऊपर की ओर उठ रहा है, मानो देवलोक के वृक्षों के पुष्प में रहा हुआ मकरन्द पाने के लिए भ्रमरों की कतार जा रही हो! जहाँ त्रिकाल-सन्ध्या में मन्दिरों में वाद्यंत्रों की ध्वनि गुंजायमान हो रही हो, मानों उत्कण्ठित मयूर आकाश में चारों ओर मधुर निनाद गुंजा रहे हों। विशाल सहस्रार्जुन नामक वृक्ष के समान बड़े-बड़े वृक्ष जिन पर बन्दर कूद-फौद कर रहे हों, शोभित हो रहे हों। जहाँ पंडितों द्वारा दान देने के लिए लक्ष्मी चलायमान है। लोह की श्रृंखला के समान जिस नगर के चारों ओर खाई विस्तार से बनायी गयी है। जहाँ वृद्धजनों के स्वर्णश्री की तरह विशिष्ट वृक्षों को संपदा वाले आरामों अर्थात् उद्यानों में और राम अर्थात् मनोहरता-सुरम्यता में सिर्फ 'आ' कार का ही फर्क दिखायी देता है।
उस नगर में मुकुटधारी दस राजाओं द्वारा क्रमिक प्रणम्य उदायन नाम का राजा हुआ। सिन्धुसौवीर आदि सोलह जनपदों से घिरे हुए वीतभय आदि ३६३ पुर पर वह शासन करता था। यदि विश्व की वस्तुओं में चन्द्रमा की किरणों से उज्ज्वल कोई शुभ्र वर्ण है तो पहले से ही यानि अनादि काल से एकमात्र यश ही वह वस्तु है। निर्मल यश रूपी चन्द्रमा के गुणों को देखकर, वैशेषिकों द्वारा जो निर्गुण कहा गया है, उसे कोई भी नहीं मानेगा। ऐसे निर्मल यश को उदायन राजा धारण करता था। जैसे बाघ के आने की आशंका से मृग एकान्त स्थान में छिपकर
बैठ जाता है, ठीक वैसे ही महल के आँगन में स्वस्तिक को देखकर ही उसके दुश्मन दूर भाग जाते थे। कहा जाता है कि उदायन राजा के धनुष का ताण्डव बहुत ही अद्भुत था। उसका एक ही बाण रणक्षेत्र में अपना लक्ष्य-वेध कर लेता था।
उधर सम्पूर्ण अद्भुत कलाओं की निधि, देवी-देवताओं के समान रूप को धारण करनेवाली चेटक राजा की सुपुत्री प्रभावती उदायन राजा की महारानी थी। विनय, सुशीलता आदि गुणों से जो अत्यन्त निर्मल थी। जो विद्वद्जनों के मन में, राजहंसिनी की तरह रमण करती थी। जिसके अद्भुत गुण रूपी मोतियों की माला में शीलरत्न बिना किसी विरोध के नायक रूप को शरण लेकर रहता था। श्रेष्ठ साधुओं में उसकी संविभक्ति उच्चता के योग्य थी अर्थात् उसकी भक्ति सुसमर्थ थी। तत्त्वों की अनुप्रेक्षा में उसकी आसक्ति तथा अनुराग पग-पग पर था।
उस प्रभावती की कुक्षि से अभिचिकुमार नाम का एक पुत्र उत्पन्न हुआ। वह युवराजपद को धारण करता हुआ बिल्कुल पिता के समान ही हुआ। केशी नाम का भानजा, जो महानिधि से सम्पन्न, विनीत था, वह राजा को अपने पुत्र की तरह ही प्यारा था।
इधर अङ्ग देश में विशाल नगरी चम्पापुरी के नाम से प्रख्यात थी। जिसमें रहनेवाले स्नेही जन स्वर्ग को भी नकारते थे अर्थात् स्वर्ग से भी बढ़कर सुखी वहाँ के नागरिक थे। उस नगर में कुमार नन्दित नाम का एक विलासी