________________
सम्यक्त्व प्रकरणम्
आज्ञा की आराधना पर दृष्टांत तीव्रपापं सद्य:फलं यतः। जितना तीव्र पाप होता है, उतना ही शीघ्र फल मिलता है।
सभी नागरिक राजा का आश्रय लेकर बिना किसी शंका के बिना हटाये यथेच्छित काम क्रीड़ाएँ करने लगे। राजा भी अपने परिवार सहित सुरभि सम्पदा का उपभोग करके अपराह्न होने पर पश्चिम उद्यान से अपने भवन को लौट गया। अंगरक्षकों के द्वारा दोनों उद्यानों से लोगों को पकड़कर दूसरे दिन राजा के सामने पेश किया गया। राजा ने पूछा-ये कौन हैं? उन्हें किस कारण से पकड़ा गया है? तब अंगरक्षकों द्वारा संपूर्ण वृत्तान्त राजा को सुनाया गया। यह सुनकर धीमन्त राजा ने थोड़ा भी क्रोध नहीं किया। अंतरंग दुश्मनों के षड्वर्ग के विजेता ही जगत्पति होते हैं। तब क्षमाधारी न्याय-अन्याय की विवेचना के विशेषज्ञ अपराध के अनुमान से निग्रह-अनिग्रह करने के लिए स्वयं राजा ने पहले पश्चिम उद्यान गामी व्यक्ति से पूछा-अंतःपुर की स्त्रियों को तुमने कैसे देखा? उसने कहा-देव! आपकी आज्ञा से ही हम वहाँ गये थे। पहले यही तय था। बाद में अंतःपुर की स्त्रियाँ वहाँ आ गयीं। तब हमने सोचा कि सुखासन से देवों की देवियाँ ही उतरकर आयी हैं। देखते ही आनन्दातिरेक से हमने अपनी माता की तरह उन्हें प्रणाम किया। और भी, चक्षु के विषय में आये हुए रूप को न देखना अशक्य है। जो राग द्वेष सहित हैं अपने आप को काबू में नहीं रख पाते। बुध व्यक्ति ही ऐसी स्थिति में निरासक्त होता है, अर्थात् नहीं देखता है। हमने अन्तःपुर की देवियों को देखने के लिए उद्यम नहीं किया, अपितु स्वयमेव ही हमें उन देवियों के दर्शन हो गये। इसमें हम सदोष हैं या निर्दोष हैं-इसका विचार करके हमें दण्डित कीजिए, क्योंकि
यतो धर्मतुलाः नृपः। राजा न्यायी होते हैं।
तब राजा ने पवित्र बुद्धि से विचार करके उनका चारित्र निर्दोष है-इस प्रकार सत्कार करके उन सबको छोड़ दिया।
दूसरे अपराधियों को, जो पूर्व के उद्यान से पकड़े गये थे, राजा ने पूछा-रे अधमों! तुम इस उद्यान में पहले से आकर क्यों बैठे? रात्रि में ही वृक्ष पर चढ़कर घोंसले में छिपे हुए पक्षी की तरह बैठकर पापियों! क्या तुमने राजाज्ञा का उल्लंघन नहीं किया? क्या तुमने नगाड़े की घोषणा नहीं सुनी?
तब उन वाचालों ने कहा-स्वामी! हम तो आपके अंतःपुरियों के अमृत से भरे रूप को देखने की इच्छा से कौतुक से वहाँ गये थे। निधान की तरह जो किसी भी प्राणी के लिए अदर्शनीय है, वह रूप मनुष्य का है या देव का? राजा के साथ क्रीड़ा करती हुई उन रूप ललनाओं को हम वृक्ष के मध्य स्थित रहकर विस्फारित नेत्रों से देखेंगे। पर हमारे दुर्भाग्य से देव वहाँ नहीं आये। हमने देवियों को नहीं देखा। अतः हमारा उद्यम व्यर्थ हुआ। राजकुल की स्त्रियों के दर्शनों की लालसा वाले हम निर्दोष हैं। हमने उन्हें नहीं देखा, अतः दोष की आशंका ही नहीं है। हमने अभिमान से नहीं, बल्कि बालपन की चपलता से आज्ञा का भंग किया है। इसलिए हे देव! आप हम पर अप्रसन्न मत होना।
राजा ने कहा-हे मूर्यो! ऐसी कोई माँग मत करो। क्योंकि राजा की आज्ञा पालन ही जीवन है और भंग करना राजघात है। अतः आज्ञा मानने में ही सार है। राजा की आज्ञा का भङ्ग करना राहुग्रास के समान है। इन्हें घटिका गृह में ले जाकर लोगों को सूचित करके इनका निग्रह करो। बहुत सारे द्रव्य के द्वारा भी वे छोड़े नहीं गये। क्योंकि राजा अपने पुत्र की आज्ञाभंग को भी सहन नहीं करते।
उस घटिका गृह के पास राजा ने अपने जासूस छोड़ दिये। कौन विशुद्ध मति वैभववाला क्या बोलता है यह जानने के लिए जासूस नियुक्त किया।
28