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सम्यक्त्व प्रकरणम्
आर्यखपुटाचार्य की कथा आदि को जाननेवाला हो। उसी औचित्य से विहार करता हो। उसी के अनुसार धर्म कथा आदि करता
हो। १६. आसन्न लद्धपइभो - प्रश्न के अनन्तर ही लब्ध प्रतिभा द्वारा उत्तर देने की बुद्धि हो।
१७. नाणाविहदेसभासन्नु - अनेक देशों की भाषाओं को जानने वाला हो। १८. से २२. पंचविहे आयारे जुत्तो - पाँच प्रकार के आचार में ज्ञानादि से युक्त हो। २३. सुत्तत्थतदुभय विहिन्नू-सूत्र व अर्थ दोनों का ज्ञाता हो। पद के उपादान में चतुर्भगी है। तदुभय शब्द
द्वारा यहाँ तीसरे भंग की ग्राह्यता कही गयी है। २४. आहारणहेउकारण - उदाहरण अर्थात् दृष्टान्त, अन्वय-व्यतिरेक रूप हेतु तथा कारण-दृष्टान्तादि से ___ रहित उपपत्ति मात्र रूपी कारण से युक्त हो।
जैसे - ज्ञान के अनाबाध प्रकर्ष से सिद्धो का सुख निरूपम है। अन्यत्र निरुपम सुख का अभाव होने से यहाँ कोई दृष्टान्त नहीं है। कहा भी है -
हेऊ अणुगमवइरेगलक्खणो सज्झवत्थुपज्जाओ । आहारणं दिटुंतो कारणमुववत्तिनिमित्तं तु ॥ (विशेषा. भा. १०७७ गा.)
अर्थात् अन्वय-व्यतिरेक लक्षण वाला हेतु होता है, जो साध्य वस्तु की पर्याय है। उदाहरण रूप दृष्टान्त कारण की उपपत्ति का निमित्त होता है।
साध्य अनित्य है। उसके आधारभूत वस्तु शब्द है और उसकी पर्याय क्रमभावी धर्म होने से कृतकत्व रूप होती है। नय निउणो - २५. नैगम २६. संग्रह २७. व्यवहार २८. ऋजुसूत्र २९. शब्द ३०. समभिरूढ तथा ३१. एवं भूत नाम के सातों नयों में निपुण हो। अगर निपुण न हो, तो वचनमात्र से बोध करने में समर्थ
नहीं होगा। ३२. गाहणा कुशलो-दूसरों को ग्रहण कराने में, विश्वास दिलाने में कुशल हो। . ३३. ससमय-परसमयविऊ - स्व सिद्धान्त तथा पर सिद्धान्त को जाननेवाला हो। ३४. गंभीरो - अतुच्छ हो। ३५. दीत्तिमं सिवो - प्रताप युक्त तथा विशिष्ट तपोलब्धि से कल्याण करने वाला हो। ३६. सोमो - अक्रोधी हो।
इस प्रकार मूलगुण आदि तो सेकडों है। पर बहुत्व के उपलक्षण से इतने ही ग्रहण किये गये है। इनसे युक्त होता हुआ प्रवचन सार अथवा सिद्धान्त अर्थ को कहने के लिए योग्य होता है।।
इस प्रकार के गुणग्राम से युक्त आचार्य आर्यखपुटाचार्य की तरह दर्शन प्रभावक होते हैं। उनका कथानक इस प्रकार है
|| आर्यखपुटाचार्य की कथा || किसी से भी अभिभूत नहीं होनेवाला, सभी द्वीपों के मध्य नाभिभूत, जम्बूद्वीप है। ऐसा सुना जाता है कि चमकते हुए जम्बुओं के कारण उसका नाम जम्बूद्वीप पड़ा। इस जम्बूद्वीप के ललाट के समान यहाँ भरत क्षेत्र है। उस ललाट पर स्वर्ण तिलक के समान लाट देश है। उसके मुक्तावलियों से विभ्रमित मध्य भाग में भृगुपुर नामक नगर है। उस नगर के अन्दर हीरो से बना हुआ अश्वावबोध नामक तीर्थ शोभित होता था। उसे देखने की इच्छुक 1. गुरु भगवंत के गुणों को विस्तारपूर्वक समझने के लिए 'गुरु गुण षट्त्रिंशिका' का वांचन करना चाहिए।
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