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नल दमयन्ती की कथा
सम्यक्त्व प्रकरणम्
का आभरण गिर जाने से शोभा विहीन अंगुली को देखकर भावितमना होकर आत्मा की निर्मलता को प्राप्त करके गृहस्थ वेश में ही केवली हो गये। फिर देव प्रदत्त चारित्र वेश धारण करके जगत् में लोगों को प्रबोध देकर शिवपुरी को प्राप्त किया।
श्री नाभिपुत्र के पवित्र चरित्र को यहाँ कुछ संक्षेप में वर्णित किया गया है। इसे प्रसन्नतापूर्वक सुनकर भवी जीव शाश्वत सुख को प्राप्त करें।
अष्टापद की वक्तव्यता पूर्ण हुई।।२३॥ अब अरिहन्त के बिंब की पूजा के लिए क्या करना चाहिए वह कहते हैंकुसुमक्खय धूवेहिं दीवययासेहिं सुंदरफलेहिं। पूआ घयसलिलेहिं अट्ठविहा तस्स कायव्या ॥२४॥
कुसुम, अक्षत, धूप, दीप, वास, सुंदर फल, घृत तथा सलिल (जल)-आठ प्रकार से बिम्ब की पूजा करनी चाहिए। आठ प्रकार उपलक्षण से कहे गये हैं। वैसे तो वस्त्र-आभरण आदि अनेक प्रकार से अर्हन्त बिम्ब की पूजा जैसे नल दमयन्ती ने पूर्वभव में की थी, वैसे करनी चाहिए। नल दमयन्ती की कथा इस प्रकार है
॥ नल दमयन्ती की कथा || इस भरत क्षेत्र में भूमिरूपी स्त्री के भाल पर रहे हुए तिलक के समान कोशल नाम का देश था। कोशलनगरी विस्तृत व्याप्त नाक के समान सुमना अप्सराओं के द्वारा मनोरम आनन्द करनेवाली थी। वहाँ अंतरंग शत्रुओं को वश में करके इक्ष्वाक वंशीय निषध नाम का राजा बाहरी शत्रओं को दास बनाकर पृथ्वी पर राज्य करता था। उसके सुन्दरी नाम की पत्नी रूप से भी अति सुन्दर थी। उसे देखकर आँखों में भ्रम पैदा होता था कि यह मनुष्याणी है या देवी? उसके दो पुत्र थे। पहला पुत्र शत्रुरूपी दावानल को छलने वाला नल था। दूसरा उसके विपरीत स्वभाववाला कूबर था।
उधर पृथ्वी तल पर अच्छे राजा से युक्त विदर्भ देश था। जिसके ऊपर-ऊपर ग्राम तथा नीचे-नीचे नगर थे। वहाँ दक्षिण दिशावधू के मस्तक को आभूषित करनेवाला अति विशाल सुखकारी अद्भुत कुण्डिनपुर नाम का श्रेष्ठ नगर था। यात्रा को जाते हुए उस नगर को देखकर शक्र भी देवों को कहता था कि उस सम्यक् कला की गवेषणा करो, जिससे छोटे से भी इस नगर में मैं बुद्धिपूर्वक वास करूँ।
वहाँ पर भीम के समान महा प्रतापी भीमरथ नामका राजा था। वह सौन्दर्य से, शौर्य से, विषमआयुधों को भी अपहृत कर लेता था। उसका उग्र प्रताप ही मेदिनी पर शासन करता था। चतुरङ्गिणी सेना तो केवल परिवार रूप अथवा घेर ने के लिए थी।
उसकी एकमात्र पत्नी पुष्पदन्ती गुणों की खान थी। जिसका लावण्य सुधा-समुद्र में मकरध्वज की तरह था। उन दोनों की निरुपम रूपश्री से युक्त एक पुत्री हुई। उसके रूप का स्वरूप वाणी से अगोचर था। माना जाता है कि उसके अंग निर्माण में विधाता कोई ओर ही था। मिट्टी कुछ ओर ही थी तथा दलिक भी कुछ अलग ही थे। उसके जैसा रूप त्रिलोक में कहीं भी नहीं देखा गया, नहीं कानों से सुना गया। फिर उस रूप का वर्णन कैसे किया जाय? उसके ललाट पर चमकता हुआ तिलक जन्म से ही था, मानों उसके भाल पर नन्हा सूर्य चमक रहा हो। गर्भ में स्थित रहते हुए भी उसके द्वारा दुर्दम शत्रु दमित किये गये। अतः पिता ने उसका नाम दमयन्ती रखा।
उसके वृद्धि को प्राप्त होने पर राजालोकों द्वारा कुतूहल से देखी जाती वह सभा में राजा की गोद में बैठकर
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