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सम्यक्त्व प्रकरणम्
चंदनबाला की कथा
किसी कार्य के उद्देश्य से मंगवा लिया। फिर राजा ने उसकी बहन से पूछा - देवी! बताओ! अभी भी तुम्हारे भाई के पास कितना धन सञ्चय है? उसने स्पष्ट किया - देव! उसका सर्वस्व लेकर आपने उसे निचोडी हुई इक्षु यष्टि की भाँति कर दिया है। चिरकाल तक चोर को पीड़ित करके राजा ने फिर उसका निग्रह किया। न्याय-निष्ठुर राजा अन्याय को नहीं भूलते। फिर मूलदेव देवराज के औज की तरह राज्य को निष्कंटक, निरपाय करके नय से उज्ज्वल राज्य का पालन करने लगा।
तेले के उपरान्त भिक्षा प्राप्त होने पर क्षुधा से पीड़ित होने पर भी कुल्मासों के द्वारा जो उसने महात्मा को दान देकर अतिथि संविभाग व्रत का पालन किया, उससे इसी जन्म में वह मूलदेव राजा हुआ। इसलिए हमें सतत अतिथि संविभाग व्रत में यत्न करना चाहिए।
इस प्रकार अतिथिसंविभाग व्रत में मूलदेव की कथा संपूर्ण हुई।।३।।६३।। अब यतिधर्म कहते हैं - खंती य मद्दयज्जयमुत्तीतवसंजमे य बोधव्ये । सच्चं सोयं अकिंचणं च बंभं च जइथम्मो ॥४॥ (६४)
क्षान्ति-क्षमा। मार्दव-मृदुता। आर्जव-सरलता। मुत्ती-निर्लोभता। तप-अनशन, ऊनोदरी आदि बारह प्रकार के तप। संयम-सतरह प्रकार का है, जो इस प्रकार बताया गया है -
पुढविदगअगणिमारुय वणस्सइ बितिचउपणिदिअजीवे । पेहुप्पेहपमज्जणपरिठवणमणवईकाए ॥१॥ (दशवै. नि. ४६) अर्थात् सत्तरह प्रकार के संयम के नाम इस प्रकार है - १. पृथ्वीकाय संयम,
____२. अप्काय संयम, ३. तेउकाय संयम,
४. वायुकाय संयम, ५. वनस्पतिकाय संयम,
६. दोइंद्रिय संयम, ७. तेइन्द्रिय संयम,
८. चतुरीन्द्रिय संयम, ९. पंचेन्द्रिय संयम,
१०. अजीव संयम, ११. प्रेक्षा संयम,
१२. उपेक्षा संयम, १३. प्रमार्जना संयम,
१४. परिस्थापना संयम, १५. मन संयम,
१६. वचन संयम, १७. काय संयम
सत्य - सम्यक् कथन करना। शौच - अव्रत का त्याग। अकिंचन - निष्परिग्रहिता। ब्रह्म - ब्रह्मचर्य। ये सभी यति के धर्म जानने चाहिए।
- इस प्रकार गृहस्थ धर्म एवं साधु धर्म रूप दो प्रकार का होते हुए भी दान-शील-तप व भावना के भेद से चार प्रकार का भी कहा गया है। इन चार प्रकार के धर्म की आचरणा करनेवालों की कथाओं को भव्यों के उपकार के लिए यहाँ कहा जाता है। सबसे पहले दान पर चंदनबाला की कथा कही जाती है -
|| चंदनबाला की कथा || सर्व द्वीपों में प्रथम द्वीप जम्बूद्वीप के भरतवर्ष क्षेत्र में सूर्य की तरह उगता हुआ रङ्ग सहित अंग नामक देश
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