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मान पिण्ड की कथा
सम्यक्त्व प्रकरणम्
वह इस समय कहाँ मिलेगा? उसने कहा- यह घर देवदत्त का है। और वह अब उस पर्षदा में बैठा है, मैंने उसे वहाँ देखा है। तब क्षुल्लक ने वहाँ जाकर गोष्ठी में बैठे हुए लोगों से पूछा - हे भद्रो ! बताओ! तुम में से देवदत्त कौन है ? उन्होंने कहा - हे क्षुल्लक! तुम्हें देवदत्त से क्या कार्य है? क्षुल्लक ने कहा- मैं उस धनवान से कुछ प्रार्थना करूँगा । क्षुल्लक पर हास्यस्थान रूप से हंसते हुए उन्होंने अंगुली से उसको इशारा करते हुए बताया कि यह देवदत्त है। क्षुल्लक ने कहा- अहो! अगर तुम उन छह मनुष्यों के बीच में से नहीं हो, तो मुझे तुम से काम है। गोष्ठी में रहे हुए मनुष्यों ने कहा- वे छः मनुष्य कौन-कौन हैं। क्षुल्लक ने कथाकार की तरह गोष्ठि में कहना प्रारम्भ किया।
'वेताङ्गुलि, बगुलों को उड़ानेवाला, 'तीर्थस्वामी, 'किङ्कर, 'गृद्धअरिंखि, 'हा दैव, खेद की बात है कि ये छः अधम पुरुष हैं जिनकी कथा इस प्रकार है
(१) किसी गाँव में अपनी पत्नी के वश में रहा हुआ एक ग्रामीण रहता था। एक बार रात्रि के अंतिम प्रहर में उसकी पत्नी ने उससे कहा- हे कान्त ! अगर मैं उठंगी, तो तुम्हारा पुत्र रोयेगा । अतः चूल्हे से राख इकट्ठी करके बाहर फेंक आओ। राजा के आदेश की तरह पत्नी के वचनों की आराधना करते हुए उसने वैसा ही किया । प्रतिदिन राख के संयोग से उसकी अंगुलि श्वेत हो गयी। रोज अंजलि भर-भरकर राख को सूपड़े में डालने से तथा उसे बाहर फेंकते हुए देखकर लोग उसे श्वेतांगुलि कहने लगे ।
(२) एक पत्नी ने अपने पति से रात्रि के अन्तिम प्रहर में कहा कि यदि मैं जल लेने जाऊँगी, तो यह बालक नहीं रहेगा। इसलिए हे पतिदेव ! जब तक कोई न देखे, आप ही जल्दी से जाकर दो घड़े पानी ले आओ। वह भी पत्नी के कथन को आदेश मानकर सिर पर घड़ा रखकर जल लाने के लिए गया । ठीक ही कहा गया है. किं न कुर्यात् प्रियावशः ।
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प्रिया के वश रहा इन्सान क्या-क्या नहीं करता?
घड़े से पानी भरते हुए बुड़ बुड़ की ध्वनि से समीप के वृक्ष पर नीड़ में स्थित सभी बगुले उड़ जाते थे । प्रतिदिन यह करते हुए उसे भी किसी ने देखा । उसने उसको सर्वत्र बक्कोड़ायी के नाम से प्रसिद्ध कर दिया ।
(३) कोई व्यक्ति दिनभर पत्नी के वचनानुसार काम कर-कर के बार-बार पूछता था कि अब क्या करूँ? क्या करूँ? "किं करोमि " यह शब्द बार-बार कहने पर, उसको सुनकर सभी लोग उसे किंकर कहने लगे ।
(४) एक बार किसी व्यक्ति ने उसकी पत्नी को नहाने की इच्छा बताकर उससे कहा - मैं पुत्र को गोद में लेकर यहाँ बैठ जाऊँगी। तुम तेल लाकर मेरे सामने रख दो । तब उसने तैल लाकर उसके पास रखा । उसकी पत्नी ने बैठे-बैठे पति के सिर में तेल लगा लिया। फिर पति को कहा- जरा अपने हाथों से मस्तक पर रगड़ दो। अंगों पर भी मसल दो, क्योंकि पुत्र हाथ में होने से मैं मसल नहीं पा रही हूँ। फिर नदी में बहुत सारे जल से नहाकर मसल मसलकर आप गोरे हो जाना। जिससे आपके सुस्नान से तीर्थ स्नान का पुण्य प्राप्त होगा । उसकी पत्नी के वृत्त को जानकर तथा नदी में नहाते हुए देखकर उसे तीर्थस्नातक कहा । इस तरह सभी जन उसे तीर्थस्नातक कहने लगे ।
(५) एक पत्नी पुत्र को गोद में लेकर थाली के समीप बैठकर भोजन करने लगी। भोजन करते-करते किसी व्यञ्जन की अभिलाषा से उसने पति को कहा - प्राणेश! तुम यहाँ आओ। जिससे मुझे जो चाहिए, वह तुम दे सको । यह तुम्हारा पुत्र मुझे उठने ही नहीं देता । उठने में लज्जा का अनुभव होने के कारण, और प्रिया के वचन का खण्डन न कर सकने के कारण गृद्ध की तरह बैठे-बैठे खिसक - खिसककर वहाँ आया और वैसे ही लौट गया। इसी प्रकार की क्रिया करते हुए किसी ने उसे देख लिया। तब से उसे गृद्ध - अरिंखी कहने लगे।
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