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सम्यक्त्व प्रकरणम्
गोचरी के दोषों की व्याख्या
के आने के समाचार मिलने पर विवाहादि उत्सव आगे पीछे रखना प्राभृतिका दोष है। ७. अन्धकार आदि में रहे हुए आहार को साधु के लिए बाहर रखना अथवा गवाक्ष आदि को प्रकाश के लिए
खोलना प्रादुष्करण दोष है। ८. साधु के लिए मूल्य देकर कोई वस्तु खरीदना - क्रीत दोष है। ९. प्रमाण, प्रमित, प्रमेय ये तीन नाम हैं। साधु योग्य वस्तु को दान देने के लिए किसीसे छीनकर ग्रहण करना
प्रमित्य नामक दोष है। १०. शालि आदि को बाजरा आदि अन्य वस्तु से दूसरे व्यक्ति से बदल कर देना - परावर्तित दोष है। ११. स्व अथवा पर गाँव से साधु के लिए आहार लाना अभिहत दोष है। १२. घी तेल आदि जिस पात्र में रखा हो, उस पर मिट्टि का लेप बन्द किया हुआ हो, वह साधु के लिए
तोड़कर अथवा जिस कपाट में अपना कोई काम न हो, उस कबाट को साधु के लिए खोलकर जो दिया
जाता है, उससे उद्भिन्न दोष लगता है। १३. माल पर से कठिनाई से उतारने योग्य वस्तु को उतारकर, छींके आदि पर से लेकर अथवा तल भँवरे में
से साधु के निमित्त लाना मालापहत दोष है। १४. दूसरे की वस्तु अथवा पुत्र-पत्नी आदि पारिवारिक जन की सत्ता में रही हुई वस्तु को बलात् छीन करके
साधु को देना आच्छेद्य दोष है। १५. सभी की आज्ञा के बिना बहुत जनों के लिए रांधा हुआ एक ही व्यक्ति के द्वारा साधु को देना - अनिसृष्ट
दोष है। १६. अपने लिए पकते हुए आहार में साधु के आगमन को श्रवणकर उनके लिए अध्यवसायपूर्वक अधिक
धान्य का निक्षेप करना यह अध्यवपूरक दोष है।।६-७||१२०-१२१।।
ये उद्गम के १६ दोष हुए, जो कि पिण्ड उत्पत्ति में साधु के लिए गृहस्थी द्वारा किये जाते हैं। अब उत्पादन के १६ दोषों को बताते हैं -
धाई दूइ निमित्ते आजीव यणीमगे तिगिच्छा य । कोहे माणे माया लोभे हयंति दस ए ए ॥८॥ (१२२) पुब्बिं पच्छासंथय विज्जामंते य चुन्नजोगे य । उप्पायणाइ दोसा सोलसमे मूलकम्मे य ॥९॥ (१२३) इनका अर्थ इस प्रकार है - १. भिक्षा के लिए दाता के बच्चों को खेलाने आदि का धात्री कर्म करते हुए साधु को धात्री-पिण्ड दोष
लगता है। २. परस्पर स्व पर ग्राम में प्रकट अथवा गुप्त रूप से संदेश आदि पहुँचाकर उसके द्वारा भिक्षा ग्रहण करनी
दूती पिण्ड दोष है। ३. निमित्त ज्ञान से लाभ-अलाभ आदि का कथन करके भिक्षा प्राप्त करना निमित्त पिण्ड दोष है। ४. आजीविका के लिए दाता की जाति आदि को अपनें में आरोपित करने से लब्ध भिक्षा आजीवपिण्ड
नामक दोष है। ५. याचक की तरह भिक्षा माँगकर लाना - वनीपक दोष है। ६. चिकित्सा द्वारा, वैद्यपने द्वारा अथवा वैद्यादि की सूचना द्वारा प्राप्त चिकित्सा पिण्ड है।
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