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सम्यक्त्व प्रकरणम्
तुम वृथा ही क्यों मर रही हो?
धार ने सती को देखकर भय से संभ्रमित होते हुए शीघ्र ही कहा- अभी तक इसका श्वास चल रहा है। हे पिंगल! पिंगल! लता पाश को काटो । शीघ्र काटो । पिंगल ने वेगपूर्वक दौड़कर पाश काट दिया, तभी वैदर्भी मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ी ।
गन्धार ने कहा- हे पिंगल ! यह उस सार्थपति को नहीं देखती हुई (प्रियात्मा रूपी) विपत्ति में पड़ जायगी । अतः इसे सार्थपति के पास ले चलते हैं, जिससे क्रमपूर्वक यह अपने इच्छित को प्राप्त करेगी ।
इस प्रकार कहकर वे दोनों उस प्रकार करके रंगभूमि से निकल गये ।
तब राजा ने ऊपर देखकर कहा- रवि अस्त कैसे हो गया? रसातिरेकता से हमारे द्वारा सान्ध्य विधि भी लंघित हो गयी। सामने देखकर कहा-नाट्य कर्म अति कुशल है । सपर्ण व अमात्य को आदेश दिया - हे ! तुम इन्हें कृतार्थ करो। हम इस समय युगादिदेव की सायंकालीन पूजा करेंगे। इस प्रकार कहकर सभी निकल गये ।
नाट्य के बीच हुण्डिक ने जिस प्रकार से आर्द्र होकर कहा था कि मैं नल हूँ-यह देखकर कुशल विप्र समझ गया कि इस वेश में छिपा हुआ यह नल ही है । अतः उसने उस नल से स्फुट कहा- क्या तुमने भीम भूपति को बताया कि तुम सूर्यपाक विद्या को जानते हो ? दधिपर्ण राजा ने तो विशिष्ट रूप से कह दिया कि तुम ही छिपे हुए नल हो। भैमी ने भी प्रार्थना की, जिसके कारण तुम्हें देखने के लिए मुझे भेजा गया है। भाग्य में हुए अनुकूल शकुनों ने तुम्हें नल के रूप में प्रकट कर दिया है। हे कुब्ज ! केवल तुम्हारा रूप ही विसंवाद रूप है। नल की सारी अतिशायिनी कलाएं तुझ में हैं।
कुब्ज ने कहा- कहाँ वह नल और कहाँ मैं । बताओ, क्या नाटक में रस से युक्त होकर कोई भी क्या उस प्रकार नहीं बोल सकता?
इस प्रकार बोलकर उसे घर ले जाकर पुनः भैमी की कथा पूछी। देवी के स्नेह से उसे वस्त्रालंकार आदि देकर संतुष्ट किया। जहाँ प्रियजन रहते हैं, वहाँ से अगर कौआ भी आता है, तो हर्ष होता है । फिर यह तो भैमी द्वारा प्रेषित
नर था ।
नल दमयन्ती की कथा
कुशल ने कुण्डिनपुर जाकर कुशलतापूर्वक कुब्ज के स्वरूप को सम्पूर्ण रूप से भीमराजा के सामने निरूपित किया। स्वर्ण श्रृंखला, एक लाख स्वर्णमुद्रा, आभरण आदि को कुब्ज ने दिये थे तथा नाट्य लीला से जो स्वर्णाभूषण प्राप्त हुए थे, वे सभी बताये ।
दमयन्ती ने कहा-तात ! उनकी उस प्रकार की देह, कर्म के वश अथवा किसी प्रकार के आहार ग्रहण करने से भी तो हो सकती है। सूर्यपाक की सामर्थ्य, हस्ती - शिक्षा में निपुणता, अद्भुत दानशीलता- ये सभी बातें नल के सिवाय अन्य किसी में नहीं हो सकती । किसी भी प्रकार से, कैसे भी आप उस कुब्ज को यहाँ बुलायें, जिससे मैं उसकी भावपूर्वक परीक्षा कर पाऊँ ।
भीमराजा ने कहा- हे पुत्री ! तुम्हारे झूठे स्वयंवर का आमंत्रण देकर सुंसुमार पुर के राजा को यहाँ बुलाता हूँ। लक्ष्मी में विष्णु की तरह तुम में वह पहले भी अनुरक्त था, अब भी शीघ्र ही तुम्हारे स्वयंवर को सुनकर जरूर आयगा । उसके साथ ही वह कूबड़ा भी निश्चय ही आयगा । क्योंकि अगर वह नल है, तो तुम्हारे पुनः स्वयंवर को सहन नहीं कर पायगा। नल अश्व- हृदय का ज्ञाता है। उसकी प्रेरणा से घोड़े अपने स्वामी के मनोनुकूल रथ के साथ स्पर्द्धापूर्वक दौड़ते हैं। प्रातः स्वयंवर है - ऐसा कहलवाने पर अगर वह प्रातः ही यहाँ आ जाता है, तो निश्चित रूप से वह नल ही है।
तब भीम नरेन्द्र के द्वारा भेजा हुआ दूत चैत्र के शुभ चतुर्थी के दिन सुंसुमारपुर गया। दधिपर्ण के आस्थान
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