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श्रद्धा का लहराता समन्दरमा
२९ । जिसने मटमैले हीरे को स्वच्छ किया तथा उसमें छिपे पानी (प्रतिभा) मैंने पूज्य गुरुदेव श्री के चरणों में यह समाचार निवेदित को प्रकट किया और अपने परिश्रम से उस बाल-हीरे को कोहिनूर किया। इस पीड़ापूर्ण समाचार को सुनकर उनके मन को भी बहुत में बदल दिया। दूसरे महापुरुष उस जौहरी के समान हैं जिसने हीरे ख्याल हो रहा है। के ढेर में भी सर्वोत्तम हीरे को पहचान लिया तथा सितारों की
उपाध्याय श्री के पूर्वज मुनिराजों के एवं हमारे पूर्वज गुरुओं बारात में चाँद-सा दूल्हा बना दिया अर्थात् मुनि को देवों का देवेन्द्र
के परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध सम्पर्क थे। हम वर्तमान में भी वैसा ही घोषित कर दिया।
अनुभव करते हैं। अतः उपाध्याय श्री जी का महाप्रयाण दोनों मुनि 9000 आप समझ गए होंगे कि मेरा इशारा किन महापुरुषों की ओर परम्पराओं के लिये महान् क्षति है। है। फिर भी स्पष्ट कह देता हूँ। ये महापुरुष हैं या थे क्रमशः हमारे
उपाध्याय श्री इस युग के विशिष्ट मुनिराज थे। उनका जीवन वर्तमान आचार्य के पूज्य गुरुदेव उपाध्याय प्रवर श्री पुष्कर मुनि ।
संघ, समाज के लिये, प्रेरणा पूर्ण था। उनका अभाव समाज के लिये 90 जी महाराज और श्रमणसंघ के द्वितीय पट्टधर आचार्य सम्राट् श्री ।
जहाँ खिन्नता का कारण है वहाँ यह प्रेरणा सदैव देता रहेगा जीवन आनंदऋषि जी महाराज।
को ऐसे सुनियोजित तरीके से जीओ कि स्व और पर दोनों का उपाध्याय श्री, आचार्यश्री और भाग्य प्रेम-कुल
हित साधन कर, अपने परम लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। इसके अतिरिक्त चारित्र-नायक चमत्कारिक उपाध्यायश्री जी का
उपाध्याय श्री अपने समस्त कार्यों को पूर्ण कर, विशिष्ट तथा तृतीय पट्टधर आचार्य सम्राट श्री देवेन्द्र मुनि जी म. का
समाधि साधना के साथ पुष्कर पलाशवत् अपने जीवन की यात्रा हमारे इस भाग्य-प्रेम कुल से अखण्ड संबंध जुड़ चुका है, क्योंकि
३ को सम्पन्न कर गये हैं। यह कितनी महान् उपलब्धि है। हमारे पूज्य गुरुदेव सरल स्वभावी उपप्रवर्तक श्री प्रेमसुख जी म. आपश्री के लिये ये गुरु-वियोग के पीड़ादायक पल हैं परन्तु के पौत्र शिष्य श्री राजेश मुनि जी म. ने जहाँ उपाध्यायश्री जी को आपके लिये यह कितने महान् गौरव की बात भी है-आपश्री के दीक्षामन्त्र प्रदान किया था। वहीं गुरुदेव के प्रपौत्र अर्थात् श्री राजेश गुरुदेव जन-मन के आराध्य बने। मुनिजी म. के शिष्य श्री अनुपम मुनि जी म. को वर्तमान आचार्य
अत्रस्थ सभी मुनिवर आपश्री के गुरुवियोग के इस पीड़ादायक श्री देवेन्द्र मुनि जी म. ने २८ मार्च को उदयपुर में चादर पद
समय में हार्दिक संवेदना अभिव्यक्त करते हैं। महोत्सव के प्रसंग पर दीक्षा-मंत्र प्रदान किया जो इस भाग्य प्रेम-कुल के लिए सौभाग्य की बात है। इसके अतिरिक्त आचार्य-पद चादर महोत्सव में गुरुदेव श्री के
[ अद्भुत योगी उपाध्याय पुष्कर मुनिजी म. ) ज्येष्ठ शिष्य-रत्न पं. प्रवर श्री रवीन्द्र मुनि जी म. ठाणा चार को जो आचार्य श्री जी से प्रेम भरा अपनत्व मिला, उसे कभी भुलाया
-सिद्धान्ताचार्य राममुनि 'निर्भय' 660 नहीं जा सकता। इस बात को हम निःसंकोच कह सकते हैं कि
संसार में दो ही मार्ग हैं-एक भोग मार्ग, दूसरा योग मार्ग। आचार्यप्रवर इस भाग्य-प्रेम-कुल-मंदिर के आराध्य देव हैं। बस
भोग मार्ग पर चलने वाला भोगी होता है तथा योग मार्ग पर चलने DOS हमारी शासनेश प्रभु से यही प्रार्थना है कि आचार्य भगवन् द्वारा
वाला योगी होता है। जैन दर्शन में मन-वचन-काया को योग की DD हम सभी पर इसी तरह प्रेम की वर्षा होती रहे।
संज्ञा दी है। फलितार्थ हुआ कि मन-वचन-काया को जिसने अपने ORDS अन्त में पुनः अनन्त श्रद्धा के केन्द्र उपाध्याय प्रवर श्री पुष्कर वश में कर लिया है वह योगी है। उपाध्याय पुष्कर मुनिजी म. ऐसे मुनि जी म. को, पू. गुरुदेव की ओर से और समस्त प्रेम-कुल के ही एक योगी थे, अद्भुत योगी। सदस्यों की ओर से श्रद्धा-सहित भाव-सुमन अर्पित करता हूँ।
। योगी के लिए ध्यान मुद्रा का बहुत महत्व होता है। ध्यान में
आत्मा से वार्तालाप करने का अवसर मिलता है। ध्यान में शरीर से
परे हटकर साधक आत्मा के निकट पहुँच जाता है। एक अंग्रेज एक महान क्षति है
विचारक ने कहा है-ध्यान क्या है-श्री सुभद्र मुनि
Absent in the body (शासनरल योगीराज श्री रामकृष्णजी म. के सुशिष्य)
present in the soul. आज प्रातः ज्ञात हुआ-"परम श्रद्धेय उपाध्यायप्रवर श्री पुष्कर
उपाध्याय जी म. को घंटों ध्यान में बैठने का अभ्यास था। मुझे Dee मुनि जी महाराज दिव्यलोक को प्रस्थान कर गये।" उक्त समाचार
स्वयं अनुभव करने का अवसर प्राप्त हुआ है। वे एक सच्चे संत से मन स्तम्भित रह गया।
थे। संत का अर्थ है-शांत! जो शांत है वही सच्चा संत है।
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