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प्राकृतव्याकरणे
तित्तिरौ रः॥ १० ॥ तित्तिरिशब्दे रस्येतोद् भवति । तित्तिरो।
तित्तिरि शब्द में, र् से संपृक्त रहने वाले इ का अ होता है। उदा०—तित्तिरो (/तित्तिर )।
इतौ तो वाक्यादौ ॥११॥ वाक्यादिभूते इतिशब्दे यस्तस्तत्संबंधिन इकारस्य अकारो भवति । इअ जंपि आवसाणे । इअ विअसि २अकूसमसरो। वाक्यादाविति किम् । पिओ त्ति । पुरिसोत्ति ।
वाक्य के आदि रहने वाले इति शध्द में जो त् है उससे सम्बन्धित होने वाले इकार का अकार होता है। उदा.---इअ.."सरो। वाक्य के आदि रहने वाले ( इति शब्द में ) ऐसा क्यों कहा है ? ! कारण यदि इति शब्द वाक्य के आरम्भ में न हो, तो व से संपृक्त रहने वाले इ का अ न होकर, सूत्र १.४२ के अनुसार वर्णान्तर होता है। उदा. --- ) पिओ.."त्ति ।
ईजिह्वासिंहविंशतिशतो त्या ।। १२ । जिह्वादिषु इकारस्य तिशब्देन सह ई भवति । जीहा । सीहो । तीसा । वीसा । बहुलाधिकारात् क्वचिन्न भवति । "सिंहदत्तो। सिंहराओ'।
जिह्वा इत्यादि शब्दों में, ति शब्द के साथ इकार का ई होता है। उदा.----- जीहा... ..'बोसा । बहल का अधिकार होने से, क्वचित ( इकार का ई) नहीं होता है। उदा० ... सिंह "राओ।
लुकि निरः ॥ १३ ॥ निर् उपसर्गस्य रेफलोपे सति ईकारो भवति। नीसरइ । नीसासो । लुकीति किम् । निष्णओ" । निस्सहाई अंगाई।
निर् उपसर्ग में से रेफ का ( = र व्यञ्जन का ) लोप होने पर, इ का ईकार होता है। उदा - नीसरइ, नीसासो। ( निर् उपसर्ग में से ) र् का लोप होने पर ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण यदि र् का लोप न हो, तो इ का ईकार नहीं होता है। उदा ..---- ) निण्णओ... . 'अंगाई। १. इति जल्पिलावसाने ।
२. इति विकसितकुसुमश ( स ) रः । ३.प्रियः इति ।
४. पुरुषः इति । ५. सिंहदत्तः ।
६. सिंहराजः। ७.निर्णयः।
८. निःसहानि भङ्गानि ।
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