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तृतीयः पादः
धातुभों को लगनेवाले परस्मैपद और आत्मनेपद प्रत्ययों में से माद्य त्रय से संबंधित होनेवाले बहु (= अनेक) वचन के स्थान पर न्ति, न्ते और इरे ऐसे आदेश होते हैं। उदा०-हसन्ति....'' रयणाई; दोणि.... बाहू; (यहाँ न पहुप्पिरे यानी) न प्रभवतः ( = समर्थ नहीं होते हैं ) ऐसा अर्थ है; विच्छुहिरे ( यानी ) विक्षुभ्यन्ति (=क्षब्ध होते हैं ) ऐसा अर्थ है । इरे प्रत्यय) क्वचित् एकवचन में मी लगता है। उदा.-~-सूसइरे गामचिक्खल्लो (यहाँ सूसइरे यानी) शुष्यति ( = सुखता है) ऐसा भर्य है।
मध्यमस्येत्थाहचौ ॥ १४३ ॥ त्यादीनां परस्मैपदात्मनेपदानां मध्यमस्य त्रयस्य बहुषु वर्तमानस्य स्थाने इत्था हच इत्येतावादेशौ भवतः । हसित्था हसह। वेवित्था वेवह। बाहुलकादित्थान्यत्रापि। यद्यत्ते रोचते जं जं ते रोइत्था। हच् इति चकारः इहह चोहस्य ( ४.२६८ ) इत्यत्र विशेषणार्थः ।।
धातुओं को लगनेवाले परस्मैपद और आत्मनेपद प्रत्ययों में से मध्यम त्रय के बहु ( =अनेक ) वचन के स्थान पर इत्था और इच् ऐसे ये आदेश होते हैं। उदा०हसित्या.... वेवह । बाहुलक से इत्था (प्रत्यय) अन्य स्थानों पर (लगा हुआ। दिखाई देता है । उदा.-) यद्यत्ते....'रोइत्या । हच में से चकार 'इह हवोहस्य' इस सूत्र में विशेषणार्थी है।
तृतीयस्य मोमुमाः ॥१४४॥ त्यादीनां परस्मैपदात्मनेपदानां तृतीयस्य त्रयस्य सम्बन्धिनो बहुषु वर्तमानस्य वचमस्य स्थाने मो मु म इत्येते आदेशा भवन्ति । हसामो हसामु हसाम । 'तुवरामु तुवराम।
धातुओं को लगनेवाले परस्मैपद और आत्मनेपद प्रत्ययों में तृतीय त्रय से संबंधित होनेवाले बहु (= अनेक) बचन के स्थान पर मो, मु और म ऐसे ये आदेश होते हैं । उदा.-हसामो.....तुवरमा ।
- अत एवैच से ॥ १४५॥ त्यादेः स्थाने यो एच से इत्येतादेशावुक्तौ तावकारान्तादेव भवतो नान्यस्मात् । हसए हससे। तुवरए तुवरसे। करए करसे । अत इति किम् । ठाइ' ठासि । वसुआइ “वसुभासि । होइ' होसि । एवकारोकारान्ताद् एच् से एव १. त्वर् । २. कृ।
३. स्था। ४. बसुधा धातु उद्+वा धातु का आदेश है। देखिए सू ४-११ । ५. भू।
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