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तृतीयः पादः
ज्जा औए ज्ज ये आदेश (-रूप प्रत्यय ) आगे होने पर, (धातु के अन्त्य ) अकार का एकार होता है । उदा.- हसेज्जा, हसेज । ( अन्त्य ) अ का हो ( एकार होता है; अन्य स्वरों का नहीं । उदा.-) होज्जा, होज ।
ईअइज्जौ क्यस्य ॥ १६० ॥ चि-जि-प्रभृतीनां भावकर्मविधिं वक्ष्यामः । येषां तु न वक्ष्यते तेषां संस्कृतातिदेशात् प्राप्तस्य क्यस्य स्थाने इअ इज्ज इत्येतावादेशौ भवतः । हसीअइ हसिज्जइ। हसीअन्तो हसिज्जन्तो। हसी अमाणो हसिज्जमाणो। पढीअइ पढिज्जइ। होईअइ होइज्जइ। बहलाधिकारात् क्वचित् क्योपि विकल्पेन भवति । मए नवेज्ज'। मए नविज्जेज्ज। तेण लहेज्ज । तेग लहिज्जेज्ज। तेण अच्छेज्ज । तेण अच्छिज्जेज्ज । तेण अच्छीअइ।
चि, जि, इत्यादि ( धातुओं ) के भाव-कम-रूप सिद्ध करने के नियम हम आगे (सूत्र ४.२४१-२४३ देखिए) कहेंगे। परंतु जिन (धातुओं) के बारे में ( ऐसे नियम ) नहीं कहे जाएंगे, उनके बारे में, संस्कृत में से अतिदेश से प्राप्त हुए क्य ( प्रत्यय ) के स्थान पर ईअ और इज्ज ऐसे ये आदेश होते हैं। उदा०-हसीअइ.....होइज्जइ । बहुरू का अधिकार होने से, क्वचित् क्य (= य) भी विकल्प से लगता है । मए" अच्छीअइ ।
दृशिवचे सडच्चं ॥ १६१ ॥ दृशेवंचेश्च परस्य क्यस्य स्थाने यथासंख्यं डीसडुच्च इत्यादेशौ भवतः । ईअइज्जापवादः । दीसइ । वुच्चइ ।
हम और वच् ! इन धातुओं ) के आगे आनेवाले वय ( प्रत्यय ) के स्थान पर अनुक्रम से डीस ( =डित् ईस ) और डुच्च ( = डित् उच्च ) ऐसे आदेश होते हैं। (क्त प्रत्यय के ) ईअ और इज्ज ( ऐसे आदेश होते हैं-सूत्र ३. ६० देखिए ) इस नियम का अपवाद प्रस्तुत नियम है । उदाo--दीसइ, वुच्चइ ।
सी ही हीअ भूतार्थस्य ।। १६२ ।। भूतेर्थे विहितोद्यतन्यादिः प्रत्ययो भूतार्थः, तस्य स्थाने सी ही हीम इत्यादेशा भवन्ति । उत्तरत्र व्यञ्जनादोअ-विधानात् स्वरान्तादेवायं विधिः । कासी काही 'काहीअ। अकार्षीत् अकरोत् चकार वेत्यर्थः । एवम् । ठासी ठाही ठाही । आयें। देविन्दो "इणमब्बवी इत्यादी सिद्धावस्थाश्रयणात् ह्यस्तन्याः प्रयोगः । १. नम्। २. लभ् । ३. अच्छ के लिए सत्र ४.२१५ देखिए । ४. Vव ।
५. देवेन्द्रः इदं अब्रवीत् ।
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