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टिप्पणियां
३.४३ क्विबन्तस्य-क्विप् प्रत्यय से अन्त होने वाला का। क्विप यह एक कृत् प्रत्यय है । वह पहले लगता है फिर उसका लोप होता है।
३४४ ऋकारान्त शब्दों के उकारान्त अंग उकारान्त संज्ञा के समान चलते हैं।
३.४५ ऋकारान्त शब्दों के आर से अन्त होने वाले अंग अकारान्त शब्द के समान चलते हैं । लप्तस्याद्यपेक्षया-विभक्ति प्रत्ययों के पूर्व शब्द के अन्त्य ऋ का आर होता है । अब लागे आने वाले विभक्ति प्रत्ययों का लोप हुआ ( लुप्त-स्यादि ) और यह शब्द समास में गया, तथापि लुप्त हुए स्यादि की अपेक्षा से यह आर आदेश वैसा ही रहता है। उदा०-भत्तार-विहिअं।
३.४६ बाहुलकात्-बाहुलके बहुलत्व के कारण । मातुरिद्... वन्देमातृ शब्द के इकारान्त और उकारान्त अंग ये इकारान्त और उकारान्त स्त्रीलिंगी संज्ञा के समान चलते हैं।
३.४७ ऋकारान्त संज्ञा के अन्त में अर आदेश आने पर, वह संज्ञा अकारान्त शब्द के समान चलती है ।
३.४६ राज० शब्द का रायाण अंग अकारान्त शब्द से समान चलता है।
३.५० राइणोधणं-पिछले शब्दों की षष्ठी दिखाने के लिए धणं शब्द प्रयुक्त है। धणं का ऐसा उपयोग आगे सूत्र ३.५३, ५५, ५६, ११३-११४,१२४ में है।
३.५२ राइणो...."धणं-राइणो यह प्रथमा, द्वितीया, पंचमी और षष्ठी है यह दिखाने के लिए चिट्ठन्ति....."धणं शब्द प्रयुक्त हैं।
३.५६ आत्मन् शब्द का अप्पण अंग अकारान्त संज्ञा के समान चलता है। उदा.----अप्पाणो... 'अप्पाणेसु । विकल्प से होने वाला अप्प अंग राजन शब्द के समान चलना है। उदा०-अप्पा..... अप्पेसु । रायाणो......"रायाणेसु-ये रूप राजन शब्द के रायाण अंग के हैं। विकल्प पक्ष में सूत्र ३.४९-५५ में कहे हुए राजन शब्द के रूप होते हैं । एवम्-इसी तरह अन्य नकारान्त संज्ञाओं के रूप होते हैं । उदा०-जुवाणो..."सुकम्माणे ।
अब तक कहा हुआ संज्ञाओं का रूप विचार निम्न के अनुसार कहा जा सकता है :
___ अकारान्त पुल्लिगी वच्छ शब्द . विर्भाक्त ए० ब.
अ० व प्रथम वच्छो
वच्छा द्वितीय वच्छं
वच्छे; वच्छा तृतीय वच्छणणं
वच्छेहि हि-हिँ पंचम वच्छत्तो, वच्छओ, वच्छाउ, वच्छत्तो, वच्छाको, वच्छाउ; वच्छाहि, वच्छाहि, वच्छाहितो; वच्छा वच्छेहि, वच्छाहितो, वच्छेहितो,
वेच्छासुंतो, वच्छेसुंतो
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