________________
हि
णेसु-सु
प्र.
GO
सिं
३६९
टिप्पणियाँ
पुल्लिगी त ( तद् ) सर्वनाम स, सो
णे, णा तिणा, णेण तम्हा, तो तास, से
तास, सि ताहे, ताला, तइआ
पुल्लिगी इम ( इदम् ) सर्वनाम अयं द्वि० इणं, णं
णे, णा इमिणा, णेण
एहि, णेहि ष. अस्स, से स. अस्सि , इह
पुल्लिगी ज ( यद् ) सर्वनाम एकवचन में:-तृ० जिणा, पं. जम्हा, ष० जास
स० जाहे, जाला, जइआ
पृल्लिगी एअ ( एय ) ( एतद् ) सर्वनाम एकवचन में :-प्र. एस, एसो, इणं, इणमो, तृ० एदिणा, एदेण पं० एत्तो, एत्ताहे ष• से स• अयम्भि, ईयम्भि, एत्थ ।
पुल्लिगी क ( किम् ) सर्वनाम किणा
कम्हा, किणो कीस ष० कास स. काहे, काला, कइआ
स्त्रीलिंग में सव्व का सव्वा, इदम् का इमा, ज का जा अथवा जी, त का ता अथवा ती, किम् का अथवा की ऐसे अंग होते हैं। इनमें से आकारान्त अंग माला के समान चलते हैं। प्रथमा ए. व०, द्वितीया ए० व० और अ० व० छोड़कर अन्यत्र जी, की, और ती इनके रूप ईकारान्त स्त्रीलिंगी संज्ञा के समान होते हैं। इनके जो अधिक रूप हैं वे ऐसे होते हैं :प्र. इमिआ; एस, एसा; सा द्वि० तृ णाए
णाहिं
तृ०
कास
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org