Book Title: Prakrit Vyakarana
Author(s): Hemchandracharya, K V Apte
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 394
________________ प्राकृतव्याकरण-चतुर्थपाद ३७५ ४२७ उट्ठइ-मराठी में उठणे । ४.२० झिज्जइ-मराठी में झिजणे । ४२१-५५ इन सूत्रों में प्रेरक धातुओं के धात्वादेश कहे हैं । ४.२१ ण्यन्त–'णि' इस प्रेरक प्रत्यय से अन्त होनेवाला, प्रेरक प्रत्ययान्त । णत्वेणूमइ-सूत्र १.२२८ के अनुसार नूमइ में से न का ण होता है। ४.२२ पाडेइ-मराठी में पाडणे । ४.२७ ताडेइ-मराठी में ताउणे, ताउन । ४.३० भामेइ. "भभावेइ-सूत्र ३.१५१ देखिए । ४.३१ नासवइ, नासइ-मराठी में नासवणे, नास । ४.३२ दावइ दक्खइ-मराठी में दावणे, दाखवण । ४.३३ उग्घाडइ-मराठी में उघडणे । ४.३७ पट्ठवइ, पठ्ठावइ-मराठी में पाठवणे । ४.३८ विण्णवइ--मराठी में विनवणे। ४.४३ ओग्गालइ--मराठी में उगालणे । ४.५३ भाइअ, बीहिअ--भा और बहि धातु के क०भ०धा०वि० । ४.५६ विरा-मराठी में विरणे । ४.५७ रुजई--मराठी में रंजन, रुंजी। ४.६० हो--मराठी में होणे । हिंदी में होना । पक्षे भवइ-विकल्प पक्ष में भू धातु का भव होकर भवइ रूप होता है। विहवो--वि+भूधातु से विहव यह संज्ञा । भविउं--भव धातु से साधा हुआ हेत्वर्थक धातुसाधित तुमन्त अव्यय । ४.६१ हुन्तो--हु धातु का व९का०धा०वि० । ४.६३च्चिअ-सूत्र २.१८४ देखिए। ४.६९ मन्युनाकरणेन--करण होने बाले मन्युसे। करण वह है जो क्रिया के सिद्धि के बारे में अत्यन्त उपकारक होता है । ४७६ ह्रस्वत्वे--सूत्र १.८४ के अनुसार, ह्रस्व होने पर । ४.८६ त्वजनेरपि चयइ--त्यज शब्द में सूत्र २.१३ के अनुसार, 'त्य' का 'च' और सूत्र ४२३९ के अनुसार अन्त मे -अ' आकर चय वर्णान्तर होता है । तरतेरपि तरइ-सूत्र ४२३४ के अनुसार, तु धातु का वर्णान्तर तर होता है। ४.६६ सिम्पइ-मराठी में शिपणे । ४.१०१ बुडडइ--मराठी में बुडणे, बुडी। ४.१०४ तेअणं--तिज् धातु से सिद्ध की गई संज्ञा। ४.१०५ फुस, पुस-मराठी में फुसणे, पुसणे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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