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प्राकृतव्याकरण-चतुर्थपाद
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४२७ उट्ठइ-मराठी में उठणे । ४.२० झिज्जइ-मराठी में झिजणे । ४२१-५५ इन सूत्रों में प्रेरक धातुओं के धात्वादेश कहे हैं ।
४.२१ ण्यन्त–'णि' इस प्रेरक प्रत्यय से अन्त होनेवाला, प्रेरक प्रत्ययान्त । णत्वेणूमइ-सूत्र १.२२८ के अनुसार नूमइ में से न का ण होता है।
४.२२ पाडेइ-मराठी में पाडणे । ४.२७ ताडेइ-मराठी में ताउणे, ताउन । ४.३० भामेइ. "भभावेइ-सूत्र ३.१५१ देखिए । ४.३१ नासवइ, नासइ-मराठी में नासवणे, नास । ४.३२ दावइ दक्खइ-मराठी में दावणे, दाखवण । ४.३३ उग्घाडइ-मराठी में उघडणे । ४.३७ पट्ठवइ, पठ्ठावइ-मराठी में पाठवणे । ४.३८ विण्णवइ--मराठी में विनवणे। ४.४३ ओग्गालइ--मराठी में उगालणे । ४.५३ भाइअ, बीहिअ--भा और बहि धातु के क०भ०धा०वि० । ४.५६ विरा-मराठी में विरणे । ४.५७ रुजई--मराठी में रंजन, रुंजी।
४.६० हो--मराठी में होणे । हिंदी में होना । पक्षे भवइ-विकल्प पक्ष में भू धातु का भव होकर भवइ रूप होता है। विहवो--वि+भूधातु से विहव यह संज्ञा । भविउं--भव धातु से साधा हुआ हेत्वर्थक धातुसाधित तुमन्त अव्यय ।
४.६१ हुन्तो--हु धातु का व९का०धा०वि० । ४.६३च्चिअ-सूत्र २.१८४ देखिए।
४.६९ मन्युनाकरणेन--करण होने बाले मन्युसे। करण वह है जो क्रिया के सिद्धि के बारे में अत्यन्त उपकारक होता है ।
४७६ ह्रस्वत्वे--सूत्र १.८४ के अनुसार, ह्रस्व होने पर ।
४.८६ त्वजनेरपि चयइ--त्यज शब्द में सूत्र २.१३ के अनुसार, 'त्य' का 'च' और सूत्र ४२३९ के अनुसार अन्त मे -अ' आकर चय वर्णान्तर होता है । तरतेरपि तरइ-सूत्र ४२३४ के अनुसार, तु धातु का वर्णान्तर तर होता है।
४.६६ सिम्पइ-मराठी में शिपणे । ४.१०१ बुडडइ--मराठी में बुडणे, बुडी। ४.१०४ तेअणं--तिज् धातु से सिद्ध की गई संज्ञा। ४.१०५ फुस, पुस-मराठी में फुसणे, पुसणे ।
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