Book Title: Prakrit Vyakarana
Author(s): Hemchandracharya, K V Apte
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 395
________________ ३७६ टिप्पणियाँ 'अणु + बच्च । सूत्र ४ २५ के अनुसार व्रज् धातु का ४·१०७ अणुवच्चइवच्च वर्णान्तर होता है । ४·१०ε जुप्प -- मराठी में जुपणे, जुपणी, जुंपणे । ४·१११ उवहुंजइ-- उ + भुंज | यहाँ भ का ह हुआ है । ४.११६ तोडइ, तट्टइ, खुट्टइ - - मराठी में में तोडणे, तुटणे, खुटणे, खुंटणे । ४*११७ घुलइ – मराठी में घुलणे । घोलइ - मराठी में घोलणे, घोल । धुम्मइहिन्दी में घूमना । -- ४.११६ अट्ट - मराठी में आटणे । कढइ - मराठी में कढणे । ४·१२० गण्ठी - यह संज्ञा है । मराठी में गाठ । हिन्दी में गठि । ४·१२१ धुसाल - मराठी में घुसकणे । ४·१२२ इकारो "ग्रहार्थ - सूत्र में ह्लाद शब्द को इकार ऐसा शब्द प्रयुक्त किया है । यह इकार इस शब्द में सूत्र ४१ के स्वरूप में प्रयुक्त नहीं है । किन्तु प्रेरक प्रत्ययान्त ह्लाद् धातु का भी है, ऐसा दिखाने के लिए इकार प्रयुक्त किया गया है । ४.१२५ अच्छिन्दइ—– सूत्र ४०२१६ के अनुसार, आच्छिद् शब्द का वर्णान्तर संयुक्त व्यञ्जन के पिछले आ का ह्रस्व लाच्छिन्द होता है, सूत्र १९८४ के अनुसार, होकर अच्छिन्द होता है । ४·१२६ मलइ – मराठी में मलणे । ४१२७ चुलुचुल— मराठी में चुरुचुरु ( बोलणे ) । ४·१३० झडइ – मराडो में झडणे । यहाँ शद् (१५०) शीयति धातु है । ४·१२६ जाअइ – सूत्र ४ २४० के अनुसार जा के आगे अ आया है । जोड़कर ह्लादि अनुसार इत् के यहाँ ग्रहण होता ४-१३७ विरल्लइ -- मराठी में विरल (होणे ) । ४९१३६ कृतगुणस्य-- जिसमें गुण किया है उसका इ ई उ ऊ ऋ ॠ ऌ इनके अनुक्रम से ए, ओ, अर्, अल् होना यानी गुण होना । ४·१४३ ह्रस्वत्वे – सूत्र १८४ के अनुसार ह्रस्व होने पर । ४·१४५ अक्खिवइ — सूत्र ४२३९ के अनुसार, आक्षिप् धातु के अन्त में 'अ' आकर हुए आक्खिव वर्णान्तर में सूत्र १९८४ के अनुसार, आ का ह्रस्व होकर अक्खिय वर्णान्तर हुआ है । Jain Education International ४·१४६ लोट्टइ – हिन्दी में लेटना । ४·१४८ वडवड – मराठी में बडबड, बडबडणे । हिन्दी में बडबडाना । ४१४६ लिम्प -- मराठी में लिपणे । ४·१५२ पलीवइ — सूत्र १२२१ के अनुसार प्रदीप शब्द में द का ल होता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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