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प्राकृतव्याकरण-चतुर्थपाद
श्लोक २-समुद्र सूखे या न सूखे; उससे बडवानल को क्या ? अग्नि पानी में जलता रहता है, यही ( उसका पराक्रम दिखाने के लिए) पर्याप्त नही क्या ?
यहाँ आएण इस तृतीया एकवचन में आय आदेश है। च्चिअ-सूत्र २०१८४ देखिए ।
श्लोक ३-इस तुच्छ ( दग्ध ) शरीर से जो प्राप्त होता है वही अच्छा है; यदि वह ढंका जाय तो वह सड़ता है; ( और यदि ) जलाय जाय तो उसकी राख हो जाती है।
यहाँ आयहों इस षष्ठी एकवचन में आय आदेश है ।
४.३६६ श्लोक १-बड़प्पन के लिए सब लोग तड़फड़ाते हैं । परन्तु बड़प्पन तो मुक्त हस्त से ( = दान देने पर ही ) प्राप्त होता है। ___ यहाँ साहु इस प्रथमा ए० ब० में साह आदेश है। तडप्फडइ-मराठी में तडफडणें । तणेण-सत्र ४.४२२ देखिए।
४.३६७ श्लोक १-हे दुति, यदि वह ( मेरा प्रियकर ) घर न आता हो, तो तेरा अधोमख क्यों ? हे सखि, जो तेरा वचन तोड़ता ( = नहीं मानता ) है, वह मुझे प्रिय नहीं ( होगा)।
यहां किम् के स्थान पर काइँ ऐसा आदेश है। तुज्झ-अपभ्रंश में युष्मद् का षष्ठी एकवचन हेमचन्द्र तुज्झ ( सूत्र ४.३७२ ) देता है । तुज्झु के लिए सूत्र ४.३७२ ऊपर की टिप्पणी देखिए । तउ-सूत्र ४.३७२ देखिए। मज्झ-सूत्र ४.३७६ देखिए । काइँ..... देवखइ--यहाँ किम् का काई आदेश है। ___ श्लोक २- श्लोक ४.३५०.२ देखिए। वहाँ किम् के स्थान पर कवण ऐसा आदेश है।
श्लोक ३-बताओ किस कारण से सत्पुरुष कंगु (नामक धान ) का अनुकरण करते हैं । जैसा जसा ( उन्हें ) बडप्पन | महत्त्व प्राप्त होता है, वैसे वैसे वे सर नीचे झुकाते हैं ( यानी नम्र होते हैं )।
यहाँ कवणेण शब्द में किम् को कवण आदेश है। अणुहरहिं लहहिं नवहिंसूत्र ४.३८२ देखिए।
श्लोक ४--(यह श्लोक एक विरही प्रियकर उच्चारता है :-- ) यदि उसका ( मुझ पर ) स्नेह / प्रेम हो, तो वह मर गई होगी; यदि वह जीती हो, तो उसका ( मुझ पर ) प्रेम नहीं है; एवं च दोनों प्रकारों से प्रिया (मझको, मेरे बारे में ) नष्ट हो गई है। इसलिए हे दुष्ट मेह, तू व्यर्थ क्यों गरज रहे हो ?
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