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प्राकृतव्याकरण-चतुर्थपाद
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यहाँ करालिअउ, दिट्ठउ, किमउ, अग्गिट्ठउ इन शब्दों में स्वार्थे अ प्रत्यय है।। मह... "दोसडा–यहाँ दोसडा में स्वार्थे अह प्रत्यय है । एक्क..."रुद्धी-यहाँ कुडुल्ली में स्वार्थे उल्ल प्रत्यय है ।
४.४३० फोडेन्ति..... 'अप्पण-यहां हि अडउं में स्वार्थे अडम प्रत्यय है । चडुल्लउ...' सइ-यहां चूडल्लऊ में स्वाथें उल्लअ प्रत्यय है।
श्लोक १- ( अपने प्रियकर पर ) स्वामी का प्रसाद, सलज्जप्रियकर, सीमासंधि पर वास और ( प्रियकरका ) बाहुबल देखकर ( आनंदित हुई ) सुंदरी निःश्वास छोड़ती है।
यहाँ बलुल्लडा में उल्लअड यह स्वार्थे प्रत्यय है। पेक्खिवि-सूत्र ४.४३९ देखिए । वाहुबलुल्लडउ-यहाँ उल्ल, अड और अ ऐसे स्वार्थे प्रत्यय हैं।
४.४३१ श्लोक १---( एक पयिक अपनी प्रिया के बारे में दूसरे पथिक से पूछता है-) हे पथिक, (तुमने मेरो ) प्रिया देखी क्या ? ( दूसरा उत्तर देता है- ) 'तेरा मार्ग देखने वाली और अश्रु और श्वासों से (अपने) कंचुकको गीला करती और सूखा करतो (ऐसी) मुझसे देखी गई।
यहाँ गोरडी में ई (डी) प्रत्यय है । निअन्त-सूत्र ३.१८१ देखिए । निअ धातु दृश् धातु का आदेश है ( सूत्र ४१८१ )। करन्त-सूत्र ३.१८१ देखिए । एक्क" रुद्धी-यहाँ कुड्डल्ली में ई प्रत्पय है।
४.४३२ श्लोक १-प्रियकर आया (यह) वार्ता सुनी; ( उसकी शब्द- ध्वनि कानों में प्रविष्ट हुई; नष्ट होने वाले उस बिरह की धूल भी न देखी गई।
यहाँ धूलडिआ में आ प्रत्यय है। वत्तडौ--वत्ता (वार्ता) शब्द को सूत्र ४१४२९ के अनुसार स्वार्थे अड प्रत्यय लगा; फिर सत्र ४०४३१ के अनुसार स्त्रीलिंगी ई प्रत्यय लगा। कन्नडइ---कन्न ( /कणं ) को स्वार्थे अड प्रत्यय सूत्र ४४२९ के अनुसार लगा है । नासन्तअहो-नासन्त (सूत्र ३.१८१) शब्द के आगे स्वार्थे अ प्रत्यय आया। थलडिआ--सूत्र ४०४३३ देखिए ।
४.४३३ धूलडिआ--यहाँ धूलड शब्द के आगे आ प्रत्यय होने पर, ड में से अकार का इकार हुआ है ।
४.४६४ ईय-प्रत्ययस्य--ईय यह एक मत्वर्थी प्रत्यय है ।
श्लोक १-हे प्रियकर, (तेरा) संग सहवास नहीं मिलता; (फिर) तेरे संदेश का क्या उपयोग है ? सपने में पिए जल से (सच्ची) प्यास क्या मिटती है ?
२७ प्रा. व्या०
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