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टिप्पणिय ।
यहाँ अथवा का अहवा वर्णान्तर हुआ है। देसडइ-सूत्र ४.४२९ के अनुसार देस के आगे स्वार्थे प्रत्यय बाया। जाइज्जइ, लब्भइ, आणिअइ-ये सब कर्मणि
श्लोक ३--प्रवास पर गए हुए प्रियकर के साथ (मैं) न गई और उसके वियोग से न मरीभी; इस कारण से उस प्रियकर को संदेश देने में हम लजाती हैं । संदेसडा-सूत्र ४.४२९ देखिए।
__ श्लोक ४-इधर मेघ पानी पीते हैं; उधर बड़वानल क्षब्ध हुआ है । (तथापि ) सागर की गंभीरता को देखो; (जल का) एक कण भी कम नहीं हुआ है। एत्तहे-सूत्र ४.४२० देखिए । गहीरिम-सूत्र २.१५४ देखिए ।
४.४२० श्लोक १--जाने दो (उसे); जाने बाले ( उस ) को पीछे मत बुलाओ, (मैं) देखती हूँ कितने पैर ( वह आगे ) डालता है। उसके हृदय में मैं टेढी बैठी हूँ; (परंतु मेरा ) प्रियकर जाने का केवल आडंबर करता है ।
जाउ--सूत्र ३.१७३ देखिए । पल्लवह-सूत्र ३.१७६ देखिए ।
श्लोक २--हरि को आंगन में नचाया गया; लोगों को आश्चर्य में डाला गया, अब राधा के स्तनों का जो होता है वह होने दो।
श्लोक ३--सर्वांगसुंदर गौरी ( संदरी ) कोई अद्भुत ) नवीन विषग्रन्थि के समान है। परन्तु जिसके कंठ से वह षही चिपकती, वह ( तरुण ) वीर (मात्र) मरता है ( पीड़ित होता है)।
नवखी--मराठी में नबसी । सूत्र ४.४२२ देखिए ।
४.४२१ श्लोक १--मेंने कहा-हे धवल बैल, तू धुरा को धारण कर, दुरे बैलों ने हमें पीड़ा दे दी है; तेरे बिना यह बोझ नहीं वहा जा सकेगा, ( परंतु ) तू अब 'विषण्ण क्यों ?
कसर (देशी)-बुरा वैल।
४°४२२ श्लोक १-एक तो तू कदापि नहीं आता; दूसरे, (आये तो भी दू) शीघ्र जाता है । हे मित्र, मैंने जाना है कि तेरे समान दुष्ट कोई भी नहीं है ।
यहां शीघ्र को बहिल्ल आदेश है कइअह 'कदापि' का यह आदेश हेमचन्द्र ने नहीं दिया है। आवहो-आवहि ( सूत्र ४.३८३ ) में सूत्र ४४२९ के अनुसार स्वर बदल हो गया है । वहिल्लउ-वहिल्ल के आगे सूत्र ४४२९ के अनुसार स्वार्थ अ प्रत्यय आया है। जाहि-सूत्र ४.३८३ देखिए । मित्तडा-सूत्र ४०४२९ देखिए ।
जेहउ-जेह ( सूत्र ४४०२ ) के आगे सूत्र ४.४२९ के अनुसार स्वार्थे अ प्रत्यय आया है।
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