Book Title: Prakrit Vyakarana
Author(s): Hemchandracharya, K V Apte
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 419
________________ ४०० टिप्पणियां यहाँ अस्मद् के तृतीया ए० व० में मई आदेश है । णवर-सूत्र २.१८७ देखिए। तिह, जिह-सूत्र ४.४०१ देखिए । पई.."गयहि-यहाँ अस्मद् के सप्तमी एकवचन में मई आदेश है। मई....."तुज्झु-यहाँ अस्मद् के द्वितीया एकवचन में मई आदेश है। ४३७८ तुम्हें हिं....."किअउँ–यहाँ अस्मद् के तृतीया अनेकवचन में अम्हेहि ऐसा आदेश है। ४.३८६ श्लोक १–मेरे प्रियकर के दो दोष हैं, हे सखि, झूठ मत छिपाव । जब वह दान देता है तब केवल से अवशिष्ट बच रहती हूँ, और जब वह युद्ध करता है तब केवल तलवार अवशिष्ट/बच रहती है। ___ यहाँ अस्मद् के षष्ठी एकवचन में महु आदेश है । हेल्लि-सूत्र ४.४२२ देखिए । झंखहि-यहाँ झंख धातु बिलप् (सूत्र ४.१४८) धातु का आदेश लेकर, 'झूठ मत बोल' ऐसा ही अर्थ ले जा सकता है । आलु-मराठी में माल । श्लोक २-हे सखि, यदि शत्रुओं का पराभव हो गया होगा, तो वह मेरे प्रियकर से ही; यदि हमारे पक्षवाले पराभूत हो गए होंगे. तो उसके ( =मेरे प्रियकर के ) मारे जाने पर ही। ___ यहाँ अस्मद् के षष्ठी एकवचन में मज्झ आदेश है। पारक्कडा-परकीय शब्द को सूत्र २.१४८ के अनुसार पारक्क आदेश; उसके आगे सूत्र ४०४२६ के अनुसार स्वार्थे अड प्रत्यय आकर पारक्कड शब्द बनता है। मारिअडेण-मारिअ शब्द के आगे सूत्र ४४२९ के अनुसार स्वार्थे अड प्रत्यय आया है। ४.३८० अम्हह... .. आगदा-यहां पञ्चमी अ० व० में अम्हहं आदेश है। अह" "तणा-अहाँ अस्मद् के षष्ठी अ० व० में अम्हहं आदेश है । __सूत्र ४.३६८-३८१ में आया हुआ युष्मद् और अस्मद् सर्वनामों का रूप-विचार एकत्र करके आगे दिया है : युष्मद् सर्वनाम ए. व. अ० व० प्र० तुहुँ तुम्हे, तुम्हई द्वि० पई, तई तुम्है, तुम्हई पई, तई तुम्हेहि तउ, तुज्झ, तुघ्र तुम्हहं तउ, तुज्झ, तुध्र पई, तई तुम्हासु विभक्ति तुम्हह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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