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प्राकृतव्याकरण- चतुर्थपाद
(हम) जाएंगे । रणरूपी दुर्भिक्ष के कारण ( युद्ध न होने के कारण ) हम पीड़ित हैं; युद्ध के बिना हम सुखसे नहीं रह सकेंगे ।
यहाँ लहहुँ, जाहुँ और बलाहुँ इन प्रथम पुरुष अनेक वचनों में हुँ आदेश है । सूत्र ४*३८२-३८६ में कहे हुए अपभ्रंश के वर्तमानकाल के प्रत्यय ऐसे हैं:पुरुष
ए० व०
अ० य०
उं
हि
प्रथम
द्वितीय
तृतीय
हि
४-३८७ पञ्चम्याम् — आज्ञार्थ में |
श्लोक १ – हे हाथि, मल्लकी ( नामक वृक्ष ) का स्मरण मत कर, लंबी (दीर्घ) साँस मत छोड़; दैववश प्राप्त हुए कवल खा, (पर) मान को मत छोड़ ।
४०३
यहाँ सुमरि मेंल्लि और चरि इन द्वितीय पुरुष एकवचनों में इ आदेश है । म - मा (सूत्र ४०३२९ देखिए ) । जि - - सूत्र ४.४२० देखिए ।
श्लोक २ - हे भ्रमर घने पत्ते और बहल ( बहुत ) छाया होने वाला कदंब ( नामक वृक्ष ) फूलने तक, यहाँ नीम (के) वृक्ष पर कुछ दिन व्यतीत कर ।
यहाँ बिलम्बु इस द्वितीय पुरुष एकवचन में उ आदेश है । एत्थु – सूत्र ४°४०४ देखिए । लिम्बडइ – लिंब शब्द को सूत्र ४४२९-४३० के अनुसार स्वार्थे प्रत्यय लगे हुए हैं । दियहडा - सूत्र ४४२९ के अनुसार दियह शब्द को स्वार्थे अड प्रत्यय लगा है । जाम – सूत्र ४४०६ देखिए ।
श्लोक ३ -- हे प्रियकर, अब हाथ में (ऐसे ही ) भाला रख, तलवार छोड़ दे, जिससे (गरीब) वेचारे का मालिक (कम से कम ) न फूटा हुआ कपाल ( भिक्षा पात्र के रूप में) लेंगे ।
यहाँ करे इस द्वितीय पुरुष एकवचन में ए आदेश है | एम्बहिँ — सूत्र ४४२० देखिए । सेल्ल - (देशी) - - भाला | बप्पुडा -- मराठी में बापुडा बापडा ।
४ ३८८ स्यस्य---स्य का । स्य यह संस्कृत में भविष्यकाल का चिन्ह है । श्लोक १ - - दिवस झटपट जाते हैं, मनोरथ ( मात्र ) पीछे पड़ जाते हैं । ( इसलिए ) जो है उसे माने ( = स्वीकार करे ); 'होगा होगा' ऐसा कहते हुए मत ( स्वस्थ ) ठहरिए ।
यहाँ होसई इस रूप में स आया है । झडप्पडहिं - मराठो में झटपट । पच्छि - - सूत्र २०२१ के अनुसार, पश्चात् शब्द का पच्छा हुआ, फिर सूत्र ४०३२९ के अनुसार पछि हुआ । करनु -- पूत्र ३०१८१ के अनुसार करंतु, फिर अनुस्वार का लोप होकर करतु रूप बना ।
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