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प्राकृतव्याकरण-चतुर्थपाद
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केत्तिल में ( सूत्र २.१५७ ) भिन्न स्वर आकर ( सूत्र ४.३२९ ) एतुल केत्तल वर्णान्तर हुआ है।
४.४०९ श्लोक १--परस्पर युद्ध करने वालों में से जिनका स्वामी पीड़ित हुआ, उन्हें जो अन्न ( शब्दश:--मूंग ) परोसा गया वह व्यर्थ हो गया।
यहाँ अवरोप्पर में आदि अकार आया है। मुग्गडा--सूत्र ४४२९ देखिए । जोहन्ताहं--इस पाठ के बदले जो अन्ताहं पाठ डां० १० ल० वैद्य जी ने स्वीकृत किया है । गजिउ -मराठी में गांजणे, गांजलेला ।
४°४१. उच्चारणस्य लाघवस्-ए और ओ का ह्रस्व उच्चारण उनके स्थान पर इ और उ लिखकर अथवा उनके शीर्ष पर यह चिह्न रखकर (एँ, ओ ) दिखाया जाता है । उदा०-सुधे का हस्व उच्चारण सुधिं ऐसा ४ ३९६२ में दिखाया गया है । तो, दुल्लहहों में ओ का ह्रस्व उच्चारण इस चिह्न से दिखाया है ।
४.४११ उंहु...'लाघवम्--इन अनुस्वारान्तों का उच्चारण-लाघव होकर, उसका होनेपाला सानुनासिक उच्चारण इस चिन्ह से दिखाया जाता है । उदा०उं, हूँ इत्यादि । यहाँ आगे दिये उदाहरणों में तुच्छउँ, किज्जर में उं का, तरुहुँ में हुँ का, जहिं में हिं का और तणहँ में हं का उच्चार-लाघव है।
४°४१२ मकाराकान्तो भकार :-मकार से युक्त भकार यानी म्भ ।
श्लोक १-हे बाह्मण, जो सर्व अंगों मैं ( प्रकारों में ) निपुण हैं ऐसे जो कोई नर होते हैं, वे दुर्लम/बिरला होते है। जो वक्र (बाँके) हैं वे वंचक होते हैं; जो सीधे होते हैं, वे बैल होते हैं ।
यहाँ बम्भ में म्ह का म्भ हुआ है। छइल्ल--हिंदी में छला। उज्जुअ--ऋजु शब्द में से ऋ का उ ( सूत्र १.१३१ ) और ज् का द्वित्व ( सूत्र २९८ ) होकर हुए उज्जु शब्द के आगे स्वार्थे अ आया है । बइल्ल--हिंदी मराठी में बैल ।
'४१४ श्लोक १--वे दीर्घ लोचन अन्यही (= कुछ औरही) हैं; वह भुजयुगल अन्यही है; वह घन स्तनों का भार अन्य ही है, वह मुखकमल अन्य ही है; केशकलाप अन्यही है; और गुण और लावण्य का निधि ऐसे उस संदरी को (नितम्बिनी) जिसवे बनाया, वह विधि (ब्रह्मदेव) भी प्रायः अन्यही है।
यहाँ प्रायस् शब्द को प्राउ आदेश हुआ है।
श्लोक २--प्रायः मुनियों को भी भ्रांति है, वे केवल मणि गिनते हैं, ( परन्तु ) वे अब भी/अद्यापि अक्षर और निरामय ऐसे परमपद में नहीं लीन हुए हैं। ___ यहाँ प्रायस् को प्राइव आदेश हैं । भन्तडी--भन्ति शब्द के आगे सूत्र ४१४२९ के अनुसार स्वार्थे अड प्रत्यय आया और वाद में सूत्र ४.४३१ के अनुसार स्त्रीलिंग का
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