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टिप्पणियां
सुत्र से नियम क्वचित् लागू पड़ता है। उदा०-प्रतिभा-पडिमा ( सूत्र १.२०६ के अनुसार ) पटिमा; दंष्ट्रा-दाढा ( सूत्र १.१३९ के अनुसार ) ताठा ।
४३२६ श्लोक १-प्रेम में क्रूद्ध हुए पार्वती के पांवों के ( दस ) नखों में जिसका प्रतिबिम्ब पड़ा है ( इसलिए ) दस नखरूपी आयने में ( पड़े हुए दस और मूल का एक ऐसे ) ग्यारह रूप ( शरीर ) धारण करने वाले शंकर को नमस्कार करो । इस श्लोक में, गोली, चलण, लुछ इन शब्दों में र का ल हुआ है। श्लोक २--वाचते समय, महजतया रखे गये जिसके पांव के आधात से पृथ्वी थर्रा उठी, समुद्र उफान उठे और पर्वत गिर पड़े, उस शंकर को नमस्कार करो । इस श्लोक में हल शब्द में र का ल हुआ है।
४.३२८ प्राक्तनपशाचिकवत्-पहले ( सत्र ४.३०३-३२४ में कहे हुए पैशाची के समान ।
४.३२९४४६ इन सूत्रों में अपभ्रंश भाषा का विचार है। शौरसेनी इत्यादि भाषाओं की अपेक्षा यह विचार विस्तृत है। तथा यहाँ प्राधान्यतः पद्य उदाहरण बहुत बड़े प्रमाण में दिए गए हैं ।
४.३२६ संस्कृत में से शब्द अपभ्रंश में आते समय, उनमें स्वरों के स्थान पर मन्य स्वर प्रायः आते है । उदा०-पृष्ठ-पछि, पिट्ठ, पुट्ठि इत्यादि ।
४.३३० श्लोक १-प्रियकर श्यामल (वर्णी) है; प्रिया चम्पक वर्णी है। कसौटी के ( काले ) पत्थर पर खिचो हुई सुवर्ण रेखा के समान वह दिखाई देती है।
यहाँ प्रथमा ए० व० में ढोल्ला और सामला में अ का आ यानी दीर्घ स्वर हुआ है, और धण तथा 'रेह शब्दों में आ का अ यानी ह्रस्व स्वर हुआ है।
ढोल्ल ( देशी )-विट, नायक, प्रियकर । धण-धन्या, प्रिया ( प्रियाया धण आदेशः । टीकाकार) नोइ-सूत्र ४.४४४ देखिए । कसवट्टइ--सूत्र ४.३३४ देखिए।
__श्लोक २- हे प्रिय, मैंने तुझे कहा था ( शब्दशः--निवारण किया था) कि दीर्घकाल मान मत कर; ( कारण ) नीद में रात बीत जायेगी और झटपट प्रभात (-काल ) होगा।
यहां सम्बोधन में, ढोला में अ का आ यानी दीर्घ स्वर हुआ है।
मई-सूत्र ४.३७७ देखिए । अपभ्रश में अनेक अनुस्वार सानुनासिक उच्चारित होते हैं। वे अक्षर के ऊपर के इस चिह्न से बताए जाते हैं। तुहुँ-सूत्र ४.३६८ देखिए । करु--सूत्र ४.३८७ देखिए । निद्दए--सूत्र ४.३४९ देखिए । रत्तडो-- सूत्र ४.४२६, ४३१ देखिए । दडवड--( देशी )--शीघ्र, झटपट । माणु विहाणु-- सूत्र ४.३३१ देखिए।
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