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टिप्पणियां
द्वि०१
मुहि
सं०
आकारान्त स्त्रीलिंगी मुद्धा शब्द विभक्ति ए०व०
अ०व० प्र० मुद्ध, मुद्धा
मुद्धाउ, मुद्धाओ मुद्ध, मुद्धा
मुद्धाउ, मुद्धाओ मुद्धए ( मुद्धइ) मुद्धहे ( मुद्धहि ) मुद्धहे ( मुद्धहि ) मुद्धहि
मुद्ध हिं मुद्ध, मुद्धा
मुद्ध, मुद्धा, मुद्रहो, मुद्धाहो इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त और ऊकारान्त स्त्रीलिंगी शब्द मुद्धा के समान चलते हैं।
४.३५५-३६७ इन सूत्रों में अस्मद् और युष्मद् सर्वनामों को छोड़कर, अन्य सर्वनामों के जो विशिष्ट रूप अपभ्रश में होते हैं, वे कहे गए हैं । उन्हें छोड़कर उनके अन्य रूप उस-उस स्वरान्त संज्ञा के समान होते हैं ।
४.३५५ सर्वादेः अकारान्तात्-सूत्र:५८ ऊपर की टिप्पणी देखिए । जहां तहां कहां--इन पञ्चमी एकवचनों में हां आदेश है। होन्तउ-हो धातु के होन्त इस व० का• धा० बि० के आगे ( सूत्र ३.१८१) स्वार्थे अ ( सूत्र ४.४२६) आया है । होन्तउ की भवान ऐसी भी संस्कृत छाया दी जाती है।
४.३५६ श्लोक १–यदि मेरे ऊपर का अत्यन्त दृढ (तिलतार ) स्नेह टूट गया हो, तो सैकड़ों बार बाँकी दृष्टियों में क्यों भला देखा जा रहा हूँ ( या देखी जा रही हूँ)? ___ यहां कि इस पंचमी ए० व० में इहे आदेश है। तहे-सूत्र ४.३५९ देखिए । तट्टउ--सूत्र ४४२६ । नेहडा--सूत्र ४.४२६ । म -सूत्र ४३७७ । सह-सूत्र ४०४१६ । जोइज्जउँ--जोअ धातु के कर्मणि अंग से बना हुआ रूप है ( सूत्र ४.३८५ )।
४.३५७ श्लोक १-जहां बाण से बाण और खड्ग से खड्ग छिन्न किए जाते हैं, ( वहां ) उसी प्रकार के योद्धाओं के समुदाय में ( मेरा ) प्रियकर ( योद्धाओं के लिए ) मार्ग प्रकाशित करता है।
यहां, जहि और तहि इन सप्तमी एकवचनों में हिं आदेश है। सरिण खग्गिण-ये तृतीया ए० व० के रूप हैं । तेहइ-तेह के (सूत्र ४.४००) आगे स्वार्थे अ (सूत्र ४४२९) आकर बने तेह शब्द का सप्तमी एकवचन (सूत्र ४.३३४) ।
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