________________
प्राकृतव्याकरण-तृतीयपाद
३.१७७ वर्तमानायाः... .."भवतः-वर्तमान काल, भविष्य काल, विध्वर्थ और आज्ञार्थ इनमें कहे हुए प्रत्ययों के स्थान पर जन और ज्जा ये आदेश विकल्प से आते हैं; वे सर्व पुरुषों में और बचनों में प्रयुक्त किए जाते हैं ( सूत्र ३१७८ भविष्यन्ती-भविष्य काल । हसत हसेत् -हेस् धातु के संस्कृत में से आज्ञार्थ और विष्यर्थ तृतीय पुरुष एक वचन । अन्ये... .."पीच्छन्नि-कुछ वैयाकरणों के मतानुसार, सर्व काल और अर्थ इनमें ज्ज और ज्जा प्रयुक्त किए जाते हैं। भवति ... ."अभविष्यत् – ये रूप भू धातु के तृतीय पुरष एक वचन के क्रम से वर्तमान काल, विध्यर्थ, आज्ञार्थ, अनद्यतन भूतकाल, अद्यतन भूतकाल, परोक्ष भूतकाल, आशीलिङ्. ता और स्य भविष्यकाल और संकेतार्थ इनके हैं ।
३.१७८ भवतु भवेत्-सूत्र ३.१७७ ऊपर की टिप्पणी देखिए । ३.१७६ क्रियातिपत्ति-संकेतार्थ ।
३.१८० धातुओं को न्त और माण प्रत्यय जोड़ कर ही संकेतार्थ साधा जाता है । श्लोक १-अरिचंद्र, हिरन के स्थान पर यदि तू सिंह को ( अपने स्थान पर ) रखा होता, तो विजयी ऐसे उनके कारण तुझको राहु का नास सहन करना न पड़ता।
३.१८१ शतृ आनश्-धातु से वर्तमान काल वाचक धातुसाधित विशेषण साधने के लिए ये दो प्रत्यय हैं। उन्हें प्राकृत में न्त और माण ऐसे आदेश होते हैं । शतृ प्रत्यय के पूर्व के अन्त्य अ का विकल्प से ए होता है ( सूत्र ३.१५८ देखिए)। उदा०-हसेन्त ।
३.१८२ धातु को ई, न्ती और माणी जोढ़कर स्त्रीलिंगी वर्तमानकाल वाचक धातुसाधित विशेषण सिद्ध होते हैं । इस पाद के समाप्ति सूचक के अनन्तर कुछ पांडुलिपियों में अगला श्लोक है :
ऊध्वं स्वर्गनिकेतनादपि तले पातालमूलादपि त्वत्कोतिभ्रंमति क्षितीश्वरमणे पारे पयोधेरपि । तेनास्याः प्रमदास्वभावसुलभैरुच्चावचैश्चापलैस्ते वाचंयमवृत्तमोऽपि मुनयो मौनव्रतं त्याजिताः ।
( तृतीय पाद समाप्त )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org