________________
प्राकृतव्याकरण- तृतीयपाद
३.६९
३·१५६ क्त-सूत्र ३.१५२ ऊपर की टिप्पणी देखिए । यह प्रत्यय प्राकृत में अ/य ऐसा होता है । उसके पूर्वं धातु के अन्त्य का इ हो जाता है । उदा०-हंस + अ = इसिन |
३·१५७ क्त्वा"" • प्रत्यये- क्त्वा प्रत्यय के लिए सूत्र १२७ ऊपर की टिप्पणी देखिए । तुम्— धातु से हेत्वर्थक अव्यय सिद्ध करने का तुम् प्रत्यय है । यह प्रत्यय प्राकृत में प्रायः उं ऐसा होता है । तव्य-धातु से विध्यर्थी कर्मणि धातुसाधित विशेषण साधने का तव्य प्रत्यय है । यह प्रत्यय प्राकृत में अव्य / यव्व ऐसा हो जाता है ।
भविष्यत्कालविहितप्रत्यय - 'भविष्य काल का' इस स्वरूप में कहा हुआ प्रत्यय | इस प्रत्यय के लिए सूत्र ३.१६६ इत्यादि देखिए |
३.१५८ वर्तमाना - वर्तमानकाल | पञ्चमी – आज्ञार्थं । शतृ-धातु से वर्तमान काल का वाचक धातुसाधित विशेषण सिद्ध करने का शतृ प्रत्यय है । उसके लिए सूत्र = .१८१ देखिए ।
३·१५६ ज्जाज्जे
-ज्जा और ज्ज । ये आदेश प्राकृत भाषा में बहुत व्यापक किए गए हैं ( सूत्र ३१७७ देखिए ) ।
३.१६० चिजि वक्ष्यामः — इसके लिए सूत्र ४०२४१ देखिए । क्यस्य स्थाने—क्य प्रत्यय के स्थान पर । धातु से कर्मणि और भावे अंग सिद्ध करने का क्य प्रत्यय है । हसोअन्तो हसिज्जमाणो -- यहाँ सूत्र ३ १८१ के अनुसार अन्त
और माण प्रत्यय लगे हैं ।
बहुला विकल्पेन भवति -- क्वचित् क्य प्रत्यय ही लगता है यानी ज्ज (य) प्रत्यय लगता है; उसके पूर्व सूत्र ३०१५९ के अनुसार धातु के अन्त्य अ का ए होता है । उदा० नव + ज्ज - नवेज्ज ।
नविज्जेज्ज, लहिज्जेज्ज, अच्छिज्जेज्ज – सूत्र ३१७७ और १९५९ देखिए । अच्छ— सूत्र ४*२१५ देखिए ।
----
३-१६१ यथासंख्यम् - अनुक्रम से । डीस हुच्च - डित् ईस और डित् उच्च | दीसइ और वुच्चइ ये रूप संस्कृत के दृश्यते ( दिस्सइ - दोसइ ) और उच्यते ( उच्चइ, फिर व् का आदि वर्णागम होकर, सकते हैं।
वुच्चइ ) इनसे भी साध्य हो
W
३-१६२ भूतेर्थे... 'भूतार्थ: - भूतकाल का अर्थ दिखाने के लिए संस्कृत में जो अद्यतनी इत्यादि प्रत्यय संस्कृत व्याकरण में कहे हुए हैं, वे भूतार्थ प्रत्यय | संस्कृत में भूतकाल के लिए अद्यतन, अनद्यतन और परोक्ष ऐसे प्रत्ययों के तीन वर्ग हैं | सीहीहीअ - ये तृतीय पुरुष एकवचन के प्रत्यय दिखाई देते हैं । साहित्य में इंसु और
२४ प्रा० व्या०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org