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३१४४ देखिए | पक्षे ऐसा आदेश होता है । ३.१४८ अस्ते..
ऐसा आदेश होता है |
प्रथम
प्रथम
द्वितीय
तृतीय
एकवचन
म्ह, अस्थि
सि, अतिथ
अस्थि
टिप्पणियाँ
"अम्हो -- विकल्प पक्ष में सूत्र ३ १४८ के अनुसार अस्थि
* भवति - सर्वं पुरुषों में और वचनों में अस् धातु को अस्थि
वर्तमानकाल : अस धातु
अ० वचन
अस्थि
म्हो, म्ह
अत्थि
अत्थि
२·१४६-१५३ इन सूत्रों में प्रेरक ( प्रयोजक ) धातु सिद्ध करने की प्रक्रिया कही
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हुई हैं।
३-१४९ णैः स्थाने - णि के स्थानपर | प्रेरक धातु साधने के लिए धातु को लगाए जाने वाले प्रत्यय को णि ऐसी संज्ञा है ।
३·१५० गुर्वादेः -- जिसमें आदि स्वर गुरु यानी दीघं है उसका ।
३·१५१ भ्रमेः—√ भ्रमि-भ्रम् । एकाध धातु का निर्देश करते समय, उसको इ ( इक् ) लोड़ा जाता है ( इश्तिपो धातुनिर्देशे । पाणिनि सूत्र ३०३ १०८ ) । भामेइ.....भमावेइ – ये रूप सूत्र ३०१४९ के अनुसार होते हैं ।
कर्मणि प्रत्यय आगे होने पर,
उदा० - कर + आवि + अ
: कराविज्ज । णि
३·१५२ णे: स्थाने परत :- क्त प्रत्यय और णि प्रत्यय का लोप अथवा आदि ऐसा आदेश होता है । ( क्त प्रत्यय ) = कराविअ । कर + आवि + ज्ज ( कर्मणि प्रत्यय = के अ और ए इन आदेशों का लोप होता है, तबः -कर + + अ ( क्त प्रत्यय ) = कार + ० + अ = कारिअ । कर + + ज्ज ( कर्मणि प्रत्यय ) = कार + ० + ज्ज = कारिज्ज । क्त-धातु से कर्मणि भूतकाल वोचक धातुसाधित विशेषण सिद्ध करने वाले प्रत्यय को क्त यह तान्त्रिक संज्ञा है । उदा०—गम्-गत | भावकर्मविहित प्रत्यय -- धातु से कर्मणि और भावे अंग सिद्ध करने के लिए कहा हुआ क्य यह प्रत्यय । कारीअइहसाविज्जइ ये प्रयोजक धातुओं के कर्मणि रूप हैं ।
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३-१५- आदेरकारस्य - धातु में से आदि लकारका | प्रेरक धातु निम्न के अनुसार सिद्ध किए जाते हैं :- ( १ ) अ, ए, आव और आवे वे प्रेरक धातु सिद्ध करने के प्रत्यय हैं । (२) अ और ए ये प्रत्यय लगते समय अथवा उनका लोप हो तो. धातु में से आदि अकार का आ होता है । उदा० – कर-कार (३) धातु का आदि स्वर दीर्घ हो, तो अवि ऐसा प्रत्यय विकल्प से लगता है । उदा० -- सोस - कोसिअ, सोसविक । ( ४ ) आगे क्त प्रत्यय अथवा कर्मणि प्रत्यय हो, तो णि प्रत्यव का लोप अथवा आवि ऐसा आदेश होता है |
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