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टिप्पणियां
३.१३६ त्यादीनां विभक्तीनाम्-त्यादि के लिए सूत्र १.९ के ऊपर की टिप्पणी तथा विभक्ति के लिए सूत्र ३.१३० के ऊपर की टिप्पणी देखिए । परस्मैपदानामात्मनेपदानां च–संस्कृत में परस्मैपद और आत्मनेपद ऐसे धातु के दो पद हैं और उनके लिए प्रत्यय भी भिन्न होते हैं। ऐसा पद-प्रत्यय-भेद प्राकृत में नहीं है। धातु को लगने वाले प्रत्यय एक ही प्रकार के हैं। प्रथमत्रयस्य-पहले तोनों के यानी तृतीय पुरुष तीन वचनों के । आद्य वचनम्--एकवच, द्विवचन और बहुवचन ऐसे तीन वचन हैं, उनमें से पहला वचन यानी एकवचन ! इच् एच--इनमें च वणं इत् है । धातु के अन्तिम रूप में यह च नहीं आता है। चकारौ विशेषणाथौं—सि, से, मि, न्ति, न्ते और इरे इन् प्रत्ययों की तरह, इ और ए ये प्रत्यय इत्-रहित क्यों नहीं कहे, इस प्रश्न का उत्तर यहाँ है। पैशाची भाषा के सन्दर्भ में सूत्र ४.३१८ में इन इत्-सहित प्रत्ययों का उपयोग होने वाला है ।
३.१४० द्वितोयस्य त्रयस्य--प्रथम पुरुष के तीन वचनों का । आद्यवचनस्यएकवचन का।
३.१४१ तृतीयस्य त्रयस्य--प्रथम पुरुष के तीन वचनों का। आद्यस्य वचनस्य--एकवचन का। मिवेः स्थानीयस्य मे:--मिप ( प्रथमपुरुपी एकवचनी प्रत्यय ) के स्थान पर आने वाले मि प्रत्यय का ।
६.१४२ आद्यत्रयं--यानी प्रथमत्रय ( सूत्र ३.१३९ देखिए ) यानी तृतीय पुरुष के तीन वचन । बहष......'वचनस्य--बहु में होने वाले वचन का यानी बहवचन का । हसिज्जन्ति रमिज्जान्त--ये कर्मणि रूप हैं (सूत्र ३.१६० देखिए)। क्वचिद् ...."एकत्वेपि--क्वचित् एकवचन में भी इरे प्रत्यय लगता है।
३.१४३ मध्यमस्य त्रयस्य-यानी द्वितीयस्य त्रयस्य ( सूत्र ३.१४० देखिए ) यानी द्वितीय पुरुष के तीन वचनों का । बहुष वर्तमानस्य-बहुवचन का । हचइस शब्द में च वर्ण इत् है। जं....."रोइत्था--यहाँ तृतीय पुरुष एकवचन में रोइत्था प्रयुक्त है। हच् इति......."विशेषणार्थः-सूत्र ३.१३९ ऊपर की टिप्पणी देखिए । ४-२६८ के अनुसार ह, का ध् होता है।
१३.१४५ यौ'वुक्तौ--एच् ओर से ये आदेश सूत्र २.१३९-१४० में कहे
सूत्र ३.१३९-१४४ में कहे हुए वर्तमान काल के प्रत्यय निम्न के अनुसार होते हैं:
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