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प्राकृतव्याकरण-तृतीयपाद
३.८२ एत्तो एत्ताहे-तो और एत्ताहे प्रत्यय लगते समय, एत (द् ) सर्वनाम में से त का लोप होता ( सूत्र ३.८३ देखिए)। ___३.८३ एतदस्त्थे परे—एतद् के आगे स्थ होने पर । त्थ के लिए सूत्र ३.५६ देखिए ।
३.८७ अदसो... ."न भवति-इसका भावार्थ यह है कि सब लिंगों में अदस् सर्वनाम का प्रथमा ए० व० अह ऐसा होता है । ___३.८८ अदस् सर्वनाम का अमु ऐसा अंग होता है और वह उकारान्त संज्ञा के समान चलता है।
३.८९ ङ्यादेशे म्मौ-सूत्र ३.५९ के अनुसार ङि प्रत्यय को म्मि ऐसा आदेश होता है।
३.६०-९१ दिट्ठो, चिट्ठह-ये शब्द पिछले शब्दों को प्रथमा विभक्ति दिखाते हैं।
३.६२-९३ वन्दामि पेच्छामि—ये शब्द पिछले शब्दों को द्वितीया विभक्ति दिखाते हैं।
३.६४-६५ जंपिअं भुत्तं-ये शब्द पिछले शब्दों को तृतीया विभक्ति दिखाने के लिए हैं।
३.१०४ पक्षे स एवास्ते--विकल्प पक्ष में ब्भ यह स्वयं होता ही है । ३.१० ६ भणामो-यह शब्द पिछले शब्दों की प्रथमा दिखाता है ।
अब सर्वनाम रूप विचार ( सूत्र ३.५८-१९७) निम्न के अनुसार एकत्र किया जा सकता है :
पुल्लिगी सव्व ( सर्व ) सर्वनाम प्र० सव्वी
सर्व द्वि० सव्वं
सव्वे, सव्वा तृ० सव्वेण णं
सम्वेहि-हि-हि पं० सव्वत्तो इत्यादि वच्छ की तरह ष० सम्वस्स
सव्वेसि, सव्वाण-णं स० सवस्सि, सम्मि,
सव्वेसु-सुं सव्वत्थ, सब्वहिं ( सूत्र ३.५८-६१, १२४; १.२७ )
यद्, तद्, किम्, एतद्; इदम् इन सर्वनामों के ज, त, क, एअ (एय ); इन ये अकारान्त अंग पुल्लिगी सव्व के तरह चलते हैं। उनके जो अधिक रूप होते हैं, वे निम्न के अनुसार :
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