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प्राकृतव्याकरण-तृतीयपाद
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टिप्पणी :-प्र० ए० व० में महु ऐसा रूप दिखाइ देता है । कुछ के मतानुसार प्र० ए० व• में महुँ ऐसा भी रूप होता है ।
ह्रस्व उकारान्त स्त्रीलिंगी घेणु शब्द इसके रूप बुद्धि के समान होते हैं ।
दीर्घ ऊकारान्त बहू शब्द इसके रूप बुद्धि के समान होते हैं।
पिअरपिउ ( पितृ ) शब्द प्र. पिआ, पिअरो
पिअरा, पिउणो, पिअवो, पिमओ,
पिऊउ, पिऊ द्वि. पिअरं
पिउणो, पिऊ, विअरे, पिअरा तृ• पिउणा, पिअरेण-णं
पिऊहि-हि-हि, पिअरेहि-हि-हिं ५० (वच्छ और तरु इनके समान) ष पिउणो, पिउस्स, पिअरस्स
पिऊण-णं, पिअराण-णं स. पिउम्मि, पिअरे, पिअरम्मि
पिऊसु-सुं, पिअरेसु. पुं सं. पिस, पिअरं
पिअरा, पिउणो, पिअवो, पिकओ,
पिऊउ, पिऊ (सूत्र ३३९-४०, ४४, ४७-४८; १.२७ देखिए)
दायार/दाउ (दातृ) शब्द प्र० दाया, दायारो
दायारो, दाऊओ, दायवो, दायओ,
दायऊ, दाऊ द्वि० दायारं
दायारे, दायारा, दाउणो, दाऊ तृ० स० (वच्छ और तरु के समान) . सं० दाय, दायार
(पथमा के समान) (सूत्र ३३९-४०, ४४-४५, ४७-४८ देखिए)
माआ/माअरा (मातृ) शब्द । माआ और मायरा ये अंग माला के समान चलते हैं । माइ और माउ ये अंग अनुक्रम से बुद्धि और घेणु के समान चलते हैं ।
राय (राजद् शब्द प्र. राया
राया, रायाणो, राइणो द्वि० रायं, राइणं
राए, राया, रायाणो, राइणो तृ० रण्णा, राइणा, राएण-णं
राएहि-हि-हि, राईहि-हि-हिँ
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