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________________ प्राकृतव्याकरण-तृतीयपाद ३५९ टिप्पणी :-प्र० ए० व० में महु ऐसा रूप दिखाइ देता है । कुछ के मतानुसार प्र० ए० व• में महुँ ऐसा भी रूप होता है । ह्रस्व उकारान्त स्त्रीलिंगी घेणु शब्द इसके रूप बुद्धि के समान होते हैं । दीर्घ ऊकारान्त बहू शब्द इसके रूप बुद्धि के समान होते हैं। पिअरपिउ ( पितृ ) शब्द प्र. पिआ, पिअरो पिअरा, पिउणो, पिअवो, पिमओ, पिऊउ, पिऊ द्वि. पिअरं पिउणो, पिऊ, विअरे, पिअरा तृ• पिउणा, पिअरेण-णं पिऊहि-हि-हि, पिअरेहि-हि-हिं ५० (वच्छ और तरु इनके समान) ष पिउणो, पिउस्स, पिअरस्स पिऊण-णं, पिअराण-णं स. पिउम्मि, पिअरे, पिअरम्मि पिऊसु-सुं, पिअरेसु. पुं सं. पिस, पिअरं पिअरा, पिउणो, पिअवो, पिकओ, पिऊउ, पिऊ (सूत्र ३३९-४०, ४४, ४७-४८; १.२७ देखिए) दायार/दाउ (दातृ) शब्द प्र० दाया, दायारो दायारो, दाऊओ, दायवो, दायओ, दायऊ, दाऊ द्वि० दायारं दायारे, दायारा, दाउणो, दाऊ तृ० स० (वच्छ और तरु के समान) . सं० दाय, दायार (पथमा के समान) (सूत्र ३३९-४०, ४४-४५, ४७-४८ देखिए) माआ/माअरा (मातृ) शब्द । माआ और मायरा ये अंग माला के समान चलते हैं । माइ और माउ ये अंग अनुक्रम से बुद्धि और घेणु के समान चलते हैं । राय (राजद् शब्द प्र. राया राया, रायाणो, राइणो द्वि० रायं, राइणं राए, राया, रायाणो, राइणो तृ० रण्णा, राइणा, राएण-णं राएहि-हि-हि, राईहि-हि-हिँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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