________________
२८४
चतुर्थः पादः
............. अप्पाण ॥ २ ॥ त थ प और फ इनके स्थान पर द ध ब और भ:सबधु... .."धम्मु ॥ ३ ॥ ( सूत्र में ) अनादि होने वाले, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण यदि क इत्यादि अनादि न हो, तो यह नियम नहीं लगता है। उदा०-) सबघु करेप्पिण; यहाँ ( क अनादि न होने के कारण ) क का ग नहीं हुआ है। स्वर के आगे होने वाले, ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण क इत्यादि स्वर के आगे न हो, तो यह नियम नहीं लगता है । उदा०-) गिलि... .. 'मयंकु । असंयुक्त होने वाले, ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण क इत्यादि संयुक्त हो, तो यह नियम नहीं लगता है। उदा०-) एक्काह.. ..'सावणु । प्राय: का अधिकार होने से, क्वचित् ( क इत्यादि के स्थान पर ग इत्यादि ) नहीं आते हैं। उदा.---जइ केवई... ... ... वणवासु ॥ ४ ॥ और ॥ ५ ॥
मोनुनासिको वो वा ॥ ३६७॥ अपभ्रंशेनादौ वर्तमानस्यासंयुक्तस्य मकारस्य अनुनासिको वकारो वा भवति । कवल! कमलु । भवँरु भमरु । लाक्षणिकस्यापि । जिवँ । तिवँ । जेवें। तेवें। अनादावित्येव । मियणु असंयुक्तस्येत्येव । तसु पर सलभउ जम्मु ( ४.३६६.३ )।
अपभ्रंश भाषा में, अनादि होने वाले ( और ) असंयुक्त ( ऐसे ) मकार का अनुनासिक (-युक्त) वकार ( = =) विकल्प से होता है। उदा०-कवल ... .."भमरु । व्याकरण के नियमानुसार आने वाले (मकार ) का भी ( व ) होता है। उदा०—जिवं... ... .. .. 'ते । ( मकार ) अनादि होने पर ही ( ऐसा + होता है; मकार अनादि न हो, तो उसका व नहीं होता है। उदा०-) भयण । ( मकार ) असंयुक्त होने पर ही ( ऐसा व होता है; मकार संयुक्त होने पर, उसका व नहीं होता है। उदा०-) तसु.. .."जम्मु ।।
वाधो रो लुक ॥ ३६८॥ अपभ्रंशे संयोगादधो वर्तमानो रेफो लुग वा भवति । जइ केवइ पावीसु पिउ ( ४.३६६.४ )। पक्षे । जइ भग्गा पारक्कडा तो सहि मज्झु प्रियेण (४.३७१.२)। ___ अपभ्रंशे भाषा में, संयुक्त व्यञ्जन में अनन्सर (यानी दुसरा अवयव ) होने वाला रेफ ( वैसा ही रहता है अथवा ) विकल्प से उसका लोप होता है। उदा.-जइ केवइ....."पिंउ । ( विकल्प- ) पक्ष में:-जइ भग्गा..... प्रियेण । १. क्रमसे:-कमल । भ्रमर । २. क्रमसेः-जिम (यथा) तिम (तथा)। जेम (यथा) । तेम (तपा)। (सूत्र ४.४०१ देखिए)।
३. मदन ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org