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प्राकतव्याकरण-द्वितीयपाद
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परिमाण इस अर्थ में यद्, तद्, एतद्, किम् और इदम् इन सर्वनामों को लगता है। उदा०--यावत्, तावत्. एतावत् किया और इयत् ।
२.१५७ अतोर्डावतो:--सूत्र २.१५६ ऊपर की टिप्पणी देखिए । डित' 'एद्दहये शब्द सूत्र में से डेत्तिअ, डेतिल और डेदह इन शब्दों का अनुवाद करते हैं । एत्तिअ इत्यादि डित् आदेश होते हैं ।
२.१५ - कृत्वस्--( अमुक ) बार यह अर्थ दिखाने के लिए संख्यावाचक शब्दों के आगे कृत्वस् प्रत्यय आता है । कथं.. " भविष्यति--कृत्वस् प्रत्यय को हुत्त आदेश होता है । अब, पियत्तं यह वर्णान्तर जैसे हुआ, इस प्रश्न का उत्तर ऐसा है:पियहुत्तं शब्द में हुत्तं शब्द कृत्वम् का आदेश नहीं है। अभिमुख इस अर्थ में जो हुत्त शब्द है वह प्रिय शब्द के आगे आकर पिवहुत्तं वर्णान्तर होगा ।
२.१५६ मतोः स्थाने--मतु ( = मत् ) प्रत्यय के स्थान पर। मत् ( मतु, मतुप् ) यह एक स्वामित्व बोधक प्रत्यय है। उदः०--श्रीमत् । आलु--मराठी में आलु । उदा०--दयाल । लज्जालुआ--लज्जालु शब्द के आगे स्त्रीलिंगी आ प्रत्यय आया है। सोहिल्लो छाइल्लो--सूत्र ११० के अनुसार शब्द में से अन्य स्वर का लोप हुआ है। आल-मराठो में आल । उदा०-केसाल; इत्यादि । वन्त मन्त-ये दोनों भी प्रत्यय मराठी में होते हैं । उदा०-धनवंत, श्रीमंत ।
२.१६. तसः प्रत्ययस्य स्थाने--तस् प्रत्यय के स्थान पर। पंचमी विभक्ति का अपादान अर्थ दिखाने के लिए सर्वनामों के आगे तस् प्रत्यय जोड़ा जाता है ।
२.१६: त्रप-प्रत्ययस्य--स्थल अथवा स्थान दिखाने के लिए सर्वनामों को त्र ( अप् प्रत्यय जोड़ा जाता है। उदा०-यद्-यत्र, तद्-तत्र ।
२.१६२ दा-प्रत्ययस्य--अनिश्चित काल दिखाने के लिए एक शब्द के आगे दा प्रत्यय जोड़ा जाता है । उदा०--एक-दा ।
२.१६३ भवेर्थे--भव इस अर्थ में । अमुक स्थान में हुआ। उत्पन्न हुआ (मव) इस अर्थ में : डितौ प्रत्ययौ-डित् होने वाले दो प्रत्यय । इल्ल और उल्ल ये दो डित् प्रत्यय हैं।
२.१६४-१७३ इन सूत्रों में प्राकृत के स्वार्थे प्रत्यय कहे हुए हैं।
२.१६४ स्वार्थे कः--एकाध शब्द का मूल का स्वतः का अर्थ ( स्व + अर्थ = स्वार्थ ) न बदलते, वही, वही स्व-अर्थ कहने वाला क-प्रत्यय है। प्राकृत में यह स्वार्थे के प्रत्यय नाम, विशेषण, अव्यय, तुमन्त इत्यादि विविध शब्दों को लगता है। इस क का प्राकृत में य अथवा अ ऐसा वर्णान्तर होता है। कप---कुत्सा दिखाने के लिए क ( कप् ) प्रत्यय लगाया जाता है। उदा०--अश्व-क । ( पाणिनि के
व्याकरण में यह प्रत्यय कन ऐसा है )। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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