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टिप्पणियाँ
यावदादिलक्षणः कः - - यावादिभ्यः कन् ( पाणिनि सूत्र ४°२४९ ) यह - सूत्र भाव इत्यादि शब्दों के लिए क ( कन् ) प्रत्यय कहता है । उदा०-
व्याव-क ।
२·१६५ संयुक्तो ल:- संयुक्त ल यानी ल्ल । सेवादित्वात् -- सेवादि शब्दों में अन्तर्भाव होने के कारण । सेवादि शब्दों के लिए सूत्र २०६६ देखिए ।
२·१६६ अवरिल्लो --सूत्र १०१०८ के - वर्णान्तर होता है; उसके आगे स्वार्थे ल्ल आया है ।
अनुसार उपरि शब्द का अवरि ऐसा
२·१६७ डमया -- डित् अमया । डित् के लिए सूत्र १३७ ऊपर की टिप्पणी
देखिए ।
२·१६८ डिअम्-- डित् इ अम् ।
२१६६ डयं डिअम् - - डित् अयं और डित् इअं ।
२०१७० डालिअ -- डित् आलिअ ।
२-१७२ भावे त्वतल् - - भाववाचक संज्ञा साधने के लिए त्व और तल ( वा ) - ऐसे प्रत्यय होते हैं । म उ अत्त याइ-- पहले मृदु क शब्द को त ( द ) प्रत्यय लग कर म उ अत्त रूप बना; फिर उसे ता ( आ ) प्रत्यय लगकर म उ अत्तया ऐसा शब्द बना ! आतिशायिकात्त्वातिशायिकः -- अतिशय का अतिशय दिखाने के लिए तम वाचक शब्द के आगे फिर 'तर' प्रत्यय रखा जाता है | उदा०-ज्येष्ठ- तर
२१०३ विज्जुला -- मराठी में, हिन्दी में बिजली | पबिल – मराठी में पिबला | हिन्दी में पीला । अन्धल - - मराठी में अधला । कथं जमलं भविष्यति - जमल शब्द में स्वार्थे ल प्रत्यय है क्या, इस प्रश्न का उत्तर यहाँ है ।
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२·१७४ निपात्यन्ते - निपात इस स्वरूप में आते हैं । ( निपातन - व्युत्पत्ति 'देने का प्रयत्न न करते, अधिकृत ग्रन्थों में जैसे शब्द दिखाई देते हैं वैसे ही वे देना ) । यहाँ दिए हुए निपातों में से अनेक शब्द देशी हैं; तथापि उनमें से कुछ का मूल संस्कृत तक लिया जा सकता है । उदा० -- विउस्सग्ग— संस्कृत व्युत्सर्गा शब्द में स्वरभक्ति होकर । मुव्वहइ - संस्कृत उद्वहति शब्द में म् का आदिवर्णागम हुआ । सक्खिण - सासिन् शब्द के अन्त में अ स्वर संयुक्त किया गया । जम्मण -- जन्मन् शब्द के अन्त में अ मिलाया गया । इत्यादि । अतएव अभिधेयः- प्राकृत में वर्णान्तरित शब्द कौन से और कैसे प्रयुक्त करे; इसकी सूचना इस वाक्य में दी है । २ १७५-२१८ इन सूत्रों में अव्यय और उनके उपयोग दिए हैं ।
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