Book Title: Prakrit Vyakarana
Author(s): Hemchandracharya, K V Apte
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 363
________________ ३४४ टिप्पणियाँ २.१०१ रयणं-(रत्न)-हिन्दी में रतन । २.१.२ अग्गी-हिन्दी मराठी में आग। २.१०४ किया-आर्ष प्राकृत में क्रिया शब्द में स्वरभक्ति न होते, किया ऐसा वर्णान्तर होता है। २.१०५ व्यवस्थितविभाषया-सूत्र १५ ऊपर की टिप्पणी देखिए । २.१०६ अम्बिलं---मराठी में आंबील । २.११३ उकारान्ता डीप्रत्ययान्ताः --ई (ङी ।) इस (स्त्रीलिंगी) प्रत्यय से अन्त होने वाले उकारान्त शब्द । उदा०-तनु + ई = तन्वी । स्रुघ्नम्-यह एक प्राचीन गांव का नाम है। २.११६-१२४ इस सूत्रों में वर्णव्यत्यय । वर्णव्यत्यास स्थिति परिवृत्ति प्रक्रिया कही है। इस प्रक्रिया में शब्द में से वर्णों के स्थान की अदला-बदली होती है। उदा०-वाराणसी-वाणारसी । २.११६ एसो करेण-करेणू शब्द का पुल्लिग दिखाने के लिए एसो यह पुल्लिगी सर्वनाम का रूप प्रयुक्त किया है । २.११८ अलचपुरी-आधुनिक एलिचपूर नगर । २.१२० हरए-ह्रदह-रद ( स्वरभक्ति से )-हरय ( य-श्रुति से )। हरय शब्द का प्रथमा एकवचन हरए । २.१२२ लघुक....."भवति-लधुक शब्द में, पहले ही ध का ह ( सूत्र १-१८७ देखिए ) किए जाने पर, विकल्प से वर्णव्यत्यय होता है । हलुअं-मराठी में हलु । - २.१२३ स्थानी-जिसके स्थान पर ( यानी जिसके बदले ) आदेश कहा जाता है वह वर्ण अथवा शब्द । २.१२४ य्ह-यह य व्यञ्जन का हकारयुक्त रूप है । २.१२५-१४४ इन सूत्रों में कुछ संस्कृत शब्दों को प्राकृत में होने वाले आदेश कहे हैं। उनमें से कुछ शब्दों का भाषा शास्त्रीय स्पष्टीकरण देना संभव है। अन्य आदेश मात्र नये अथवा देश्य शब्द हैं । कुछ शब्दों का भाषाशास्त्रीय स्पष्टीकरण आगे दिया है। २.१२५ थोक्क-स्तोक ( सूत्र २.४५ के अनुसार ) थोक-क का द्वित्व होकर थोक्क । भोव-थोक शब्द में क् का व होकर थोव । थेव-थोव शब्द में ओ का ए होकर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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