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हेमचन्द्रकृत प्राकृत व्याकरण प्रथम पाद
टिप्पणियाँ
१.१ अथ
'कारार्थश्च - संस्कृत में अथ अव्यय के अनेक उपयोग होते हैं । इस सूत्र में अनन्तर ( = बाद में, आनन्तर्य ) और ( नये विषय का ) आरंभ ( अधिकार ) इन दो अर्थों में अथ शब्द प्रयुक्त है । प्रकृतिः संस्कृतम् - हेमचंद्र के मतानुसार, प्राकृत शब्द प्रकृति शब्द से साधित है और प्रकृति (= मूल) शब्द से संस्कृत भाषा अभिप्रेत होती है । अभिप्राय यह कि प्राकृत भाषा का मूल संस्कृत भाषा है । तत्र भवं 'प्राकृतम् - - प्रकृति शब्द से प्राकृत शब्द कैसे बनता है यह बात यहाँ कही है । 'तत्र भवः' पाणिनि सूत्र ४.३.५३ ) अथवा 'तत आगत:' ( पाणिनि सूत्र ४३७४ ) इन सूत्रों के अनुसार, प्रकृति शब्द को प्रत्यय लगकर प्राकृत शब्द सिद्ध हुआ है । प्रकृति होने वाले संस्कृत से निर्माण हुआ अथवा प्रकृति होने वाले संस्कृत से निर्गत हुआ, वह प्राकृत । प्राकृतम् - प्रस्तुत व्याकरण में 'महाराष्ट्री प्राकृत' ऐसा शब्द हेमचंद्र ने नहीं प्रयुक्त किया है । तथापि प्राकृत शब्द से उसको महाराष्ट्री प्राकृत अभिप्रेत है । प्राकृत मंजरी, भूमिका, पृष्ठ ३ पर कहा है: - तत्र तु प्राकृतं नाम महाराष्ट्रोद्भवं विदुः । महाराष्ट्री प्राकृत के बारे में दंडिन् कहता है:महाराष्ट्राश्रयां भाषां प्रकृष्टं प्राकृतं विदुः । संस्कृतानन्तरं क्रियते--संस्कृत के अनंतर यानी संस्कृत व्याकरण के अनंतर प्राकृत ( व्याकरण ) का आरंभ किया जाता है । हेमचंद्र कृत सिद्धहेमशब्दानुशासन नामक व्याकरण के कुल आठ अध्याय हैं; पहले सात अध्यायों में संस्कृत भाषा का व्याकरण है; प्रस्तुत आठवें अध्याय में प्राकृत / महाराष्ट्री इत्यादि प्राकृत भाषाओं का व्याकरण है । संस्कृत के व्याकरण के अनंतर प्राकृत व्याकरण का प्रारंभ होने से, पाठक को संस्कृत व्याकरण का थोड़ा ज्ञापनार्थम् - संस्कृत के
बहुत ) ज्ञान है, ऐसा यहाँ गृहीत है । संस्कृतानन्तरं अनंतर प्राकृत का प्रारंभ क्यों इस प्रश्न का उत्तर यहाँ दिया है । प्राकृत यानी प्राकृत
का शब्द संग्रह तत्सम ( = संस्कृत-सम ) तद्भव ( -देश्य शब्द, ऐसा तीन प्रकार का है । तत्सम शब्दों का व्याकरण में होने के कारण, वह यहाँ फिर से इस सूत्र के अगले वृत्ति में
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= संस्कृत - भव ), और देशी /
विचार पीछे दिये हुए संस्कृत
करने का कारण नहीं है, ऐसा हेमचंद्र 'संस्कृत समं तु संस्कृतक्षणेनैव गतार्थम्' इन शब्दों में
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