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टिप्पणियां
होता है । उस प् का व् होता है, ऐसा इस मूत्र में कहा हुआ है । अनादि असंयुक्त प् का व् होना एक महत्त्वपूर्ण वर्णान्तर है।
महिवालो---हिंदी में महियाल । एतेन पकारस्य....."तत्र कार्य:-प् के बारे में लोप और व कार ये विकार प्राप्त होने पर, जो वर्णविकार श्रुतिसुखद ( कान को मधुर लगने वाला ) हो, वह कीजिए।
१.२३२-३३ इन दो सूत्रों में आदि प् के विकार कहे हुए हैं ।
१.२३२ ण्यन्ते पटिधातौ-सूत्र १.१९८ ऊपर की टिप्पणी देखिए । फलिहौ फलिहा फालिहहो- यहाँ र के ल के लिए सूत्र १.२५४ देखिए । फणसोमराठी में फणस ।
१.२३५ पारद्धी--मराठी में, हिंदी में पारध । १.२३६ अनादि असंयुक्त फ और भ का ह होना यह एक महत्त्वपूर्ण वर्णान्तर है। १.२३७ अलाऊ--यहाँ अनादि व् का लोप हुआ है ।
१.२३८ बिसतन्तुं--यहाँ बिस शब्द नपुंसकलिंग में होने के कारण, ब का भ नहीं होता है।
१.२४० अनादि असंयुक्त भ का ह होता है । सूत्र १.१८७ देखिए ) इस नियम का प्रस्तुत नियम अपवाद रूप में माना जा सकता है।
१.२४२ यहां आदि असंयुक्त म् का विकार कहा हुआ है। १.२४४ भसलो--यहाँ र के ल के लिए सूत्र १.२५४ देखिए ।
१.२४५ आदि असंयुक्त य का ज होना यह एक महत्त्वपूर्ण वर्णान्तर है । जमहिंदी में जम।
१२४६ युष्मक्छब्देर्यपरे-डू-तुम ऐसा द्वितीय पुरुषो अर्थ होने वाले युप्मद् (सर्वनाम ) शब्द में। जुम्हदम्हपयरणं-युष्मद् और अस्मद् (सर्वनामों) का विचार करने वाला प्रकरण ।
१२४७ लट्ठी--मराठी में लाठी :
१२४८ अनीय-तीय-कृद्यःप्रत्येपु--अनीय एक कृत् प्रत्यय है। वह धातु को जोड़कर वि० क० धा० वि० सिद्ध किया जाता है। उदा-कृ+अनीय = करणीय । तीय--द्वि और वि इन संख्यावाचक शब्दों को पूरणार्थ में लगने वाला तीय प्रत्यय है । उदा०-द्वि + तीय = द्वितीच; तथा तृतीय। कृद्य-कृत् य यानी कृत् होने वाला य प्रत्यय । यह प्रत्यय धातु को लगाकर वि० क धा० वि० सिद्ध किया जाता है।
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