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________________ ३३४ टिप्पणियां होता है । उस प् का व् होता है, ऐसा इस मूत्र में कहा हुआ है । अनादि असंयुक्त प् का व् होना एक महत्त्वपूर्ण वर्णान्तर है। महिवालो---हिंदी में महियाल । एतेन पकारस्य....."तत्र कार्य:-प् के बारे में लोप और व कार ये विकार प्राप्त होने पर, जो वर्णविकार श्रुतिसुखद ( कान को मधुर लगने वाला ) हो, वह कीजिए। १.२३२-३३ इन दो सूत्रों में आदि प् के विकार कहे हुए हैं । १.२३२ ण्यन्ते पटिधातौ-सूत्र १.१९८ ऊपर की टिप्पणी देखिए । फलिहौ फलिहा फालिहहो- यहाँ र के ल के लिए सूत्र १.२५४ देखिए । फणसोमराठी में फणस । १.२३५ पारद्धी--मराठी में, हिंदी में पारध । १.२३६ अनादि असंयुक्त फ और भ का ह होना यह एक महत्त्वपूर्ण वर्णान्तर है। १.२३७ अलाऊ--यहाँ अनादि व् का लोप हुआ है । १.२३८ बिसतन्तुं--यहाँ बिस शब्द नपुंसकलिंग में होने के कारण, ब का भ नहीं होता है। १.२४० अनादि असंयुक्त भ का ह होता है । सूत्र १.१८७ देखिए ) इस नियम का प्रस्तुत नियम अपवाद रूप में माना जा सकता है। १.२४२ यहां आदि असंयुक्त म् का विकार कहा हुआ है। १.२४४ भसलो--यहाँ र के ल के लिए सूत्र १.२५४ देखिए । १.२४५ आदि असंयुक्त य का ज होना यह एक महत्त्वपूर्ण वर्णान्तर है । जमहिंदी में जम। १२४६ युष्मक्छब्देर्यपरे-डू-तुम ऐसा द्वितीय पुरुषो अर्थ होने वाले युप्मद् (सर्वनाम ) शब्द में। जुम्हदम्हपयरणं-युष्मद् और अस्मद् (सर्वनामों) का विचार करने वाला प्रकरण । १२४७ लट्ठी--मराठी में लाठी : १२४८ अनीय-तीय-कृद्यःप्रत्येपु--अनीय एक कृत् प्रत्यय है। वह धातु को जोड़कर वि० क० धा० वि० सिद्ध किया जाता है। उदा-कृ+अनीय = करणीय । तीय--द्वि और वि इन संख्यावाचक शब्दों को पूरणार्थ में लगने वाला तीय प्रत्यय है । उदा०-द्वि + तीय = द्वितीच; तथा तृतीय। कृद्य-कृत् य यानी कृत् होने वाला य प्रत्यय । यह प्रत्यय धातु को लगाकर वि० क धा० वि० सिद्ध किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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