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________________ प्राकृतव्याकरण- प्रथमपाद १२१३ स्वार्थलकारे परे - स्वार्थ अर्थ में आने वाला लकार आगे होने पर स्वार्थे लकार के लिए सूत्र २०१७३ देखिए । पीवलं - मराठी में पिवला । पीअलंहिंदी में पीला । १.२१४ काहलो —र के ल के लिए १*२५४ देखिए । माहुलिंगं - मराठी में महालुंग । १.२१५ मेढी - मराठी में मेढा । ३३३ १-२१७-२२५ सूत्र १-१७७ के अनुसार जब द् का लोप नहीं होता है तब होने वाले द् के विकार इन सूत्रों में कहे हुए है, ऐसा डॉ० वैद्य जी का कहना है । परन्तु उनका यह वचन सम्पूर्णतः सत्य नहीं है । कारण सूत्र १ १७८ अनादि द का विकार कहता है; परन्तु सूत्र १.२१७ में अनादि तथा आदि द के विकार कहे हैं; सूत्र १२१८ में और सूत्र १२२३ में भी आदि द के ही विकार कहे हुए हैं । १·२१७ डोला -- मराठी में डोला, डोला ( रा ) | हिन्दी में डोली । डण्ड-हिन्दी में डण्डा । डर -- हिन्दी में डर । डोहल -- मराठी में डोहला, डोहाला । डोहल में द के ल लिए सूत्र १-२२१ देखिए । १०२१८ डसइ - - मराठी में डसणे | हिंदी में डसना । १-२१९ संख्यावाचक शब्दों में मराठो में दन्का र होता है । उदा एकादश-अकरा, द्वादश-बारा, त्रयोदश- तेरा । हिन्दी में ग्यारह, बारह, तेरह | १०२२• कदलीशब्दे अद्र मवाचिनी -- वृक्ष-वाचक कदली शब्द न होने पर यानी कदली शब्द का अर्थ हस्ति-पताका ( हाथी के गण्डस्थल के ऊपर होने वाली पताका ) होने पर । १२२१ पलित्त --गराठी में पलिता | १२२२ कलम्ब --- मराठी में कलम्ब | १·२२४ कवट्टिओ--यहाँ ट्ट के लिए सूत्र २०२९ देखिए । १०२२८ स्वर के अगले अनादि असंयुक्त न का ण होना, यह एक महत्त्वपूर्ण वर्णान्तर है । १-२ ९ वररुचि के मतानुसार, न् कहीं भी हो, सर्वत्र उसका ण् हो जाता है ( नो णः सर्वत्र । प्राकृत प्रकाश, २.४२ ) । १२३० लिम्बो - - मराठी में लिंग । पहाविओो - मराठी में न्हावी । Jain Education International १·२३१ सूत्र १-१७७ के अनुसार अनादि असंयुक्त प् का लोप होता है । सूत्र १·१७९ के अनुसार, अ और आ इन स्वरों के आगे आने वाले प् का लोप नहीं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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