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टिप्पणियां
२.५४ भिप्फो--आगे संयुक्त व्यञ्जन होने के कारण सूत्र १.८४ के अनुसार 'भी" में से दीर्घ ई ह्रस्व इ हुई है।
२.५५ सिलिम्हो–श्लेष्मन् शब्द में अन्त्य न् का लोप (सूत्र १.९१ के अनुसार) फिर स्वर भक्ति से सिलि, बाद में सूत्र २.७४ के अनुसार ब्म का म्ह होकर, सिलिम्ह वर्णान्तर सिद्ध हुआ।
२.५६ मयुक्तो बः--म् से युक्त ब यानी म्ब ।
२.५६ उभं उद्धं--आगे संयुक्त व्यञ्जन होने से सूत्र १८४ के अनुसार दीर्घ ऊ का ह्रस्व उ हुआ । उब्भ--मराठी में उभ ( ट ), उभा ।
२.६० कम्हारा-श्म के मह के लिए सूत्र ... ४ देखिए । २.६३ चौर्य समत्वात्--सूत्र २.२४ ऊपर की टिप्पणी देखिए ।
२.६४ धिज्ज--धर्य शब्द से घेज्ज ( सूत्र ६.१४८, २०२४ के अनुसार ) । फिर धेन में से ह्रस्व ए के स्थात पर ह्रस्व इ आकर धिन वर्णान्तर हुआ है। सूरो ... ... भेदात्--सूर्य शब्द से ही प्रस्तुत नियमानुसार सूर और सुज्ज वर्णान्तर नहीं होते क्या, इस प्रश्न का उत्तर इस वाक्य में है।
२.६५ पर्यन्ते..... रो भवति--पर्यन्त शब्द में सूत्र ५.५८ के अनुसार, 'प' में से अ का ए होने पर उस एकार के अगले र्य कार होता है ।
पज्जन्तो--यहाँ सूत्र २२४ के अनुसार र्य का ज्ज हुआ है । २.६६ आश्चर्ये... ..'रो भवति---सूत्र २.६५ ऊपर की टिप्पणो देखिए । अच्छरि--सूत्र २.६७ देखिए ।
२.६७ यहां कहे हुए र्य के आदेशों का भिन्न स्पष्टीकरण ऐसा दिया जा सकता है :--रिअ, रोअ ( स्वर भक्ति से ); अर (स्कर भक्ति और वर्णव्यत्यय से ); रिज्ज (र्य का ज्ज होकर तत्पूर्व रिका आगम हुआ )।
२.६८ पलिअंको--पल्यङ्क शब्द में स्वरक्ति हुई। २.६९ भयस्सई भय फई--यहाँ भय आदेश के लिए सूत्र २.१३७ देखिए ।
२०७१ कहावण--इ.। वर्गान्तर के लिए हेमचन्द्र 'कण पिण' ऐसा संस्कृत शब्द सूचित करता है ।
२७२ दक्खिो -सूत्र २.३ देखिए ।
२.७४ मकाराकान्तो हकारः-मकार से युक्त हकार यानी म्ह । रस्सीहिंदी में रस्सी । मराठी में रस्सी ( सेच )।
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