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टिप्पणियाँ
प्रत्यय होते हैं । सर्वनाम के अनन्तर अथवा प्रत्यय लगाकर, दृश्, दृश और दृक्ष इन शब्दों उदा० - ईदृश्, ईदृश, ईदृक्ष; सदृश्, सदृश, कौन सा क्विप् प्रत्यय अभिप्रेत है, वह यहाँ
१-१४२ क्विप् टक् सक् —ये कृ 'स' के बाद आने वाले हण् धातु को ये से अन्त होने वाले शब्द सिद्ध होते हैं सदृक्ष । टक्....गृह्यते - इस सूत्र में कहा है ।
।
१९१४६-४७ ए स्वर प्राकृत में हैं। ए स्वर होने वाले आते समय कभी उनमें विकार होते हैं । वे इन सूत्रों में कहे हुए हैं ।
१·१४६ वेदनादिषु — वेदनादि शब्द इसी सूत्र में दिए गए हैं । महमहिअ - यह शब्द महसह धातु का क० भू० धा० वि० है । महमह धातु प्रसृ धातु का आदेश है (सूत्र ४७८ देखिए ) ।
संस्कृत शब्द प्राकृत में
१·१४८-१५५ प्राकृत में प्रायः ऐ स्वर नहीं है । इस ऐ को होने वाले विकार इन सूत्रों में कहें हुए हैं ।
१९४९ सिन्धवं सणिच्छरो— सैन्धव और शनैश्वर शब्दों में पहले ऐ का ए हुआ (सूत्र १९४८ देखिए ) ; यह ए सूत्र १९८४ के अनुसार ह्रस्व होता है; इस ह्रस्व ए के स्थान पर ह्रस्व इ आई है, ऐसा भी कहा जा सकता है ।
१·१५० सिन्नं --सूत्र १०१४९ ऊपर की टिप्पणी देखिए ।
१·१५३ देव्वं दइव्वं -- इन शब्दों में से द्वित्व के लिए सूत्र २९९ देखिए । १·१५४ उच्च" "सिद्धम् - उच्च और नीचः शब्दों के वर्गान्तर उच्च और नीच होते हैं । तो फिर उच्च और नीच शब्दों के वर्णान्तर कौन से होते हैं ? उत्तर है- उच्च शब्द का उच्च और नीच शब्द का नीच, नयि ऐसे वर्णान्तर होते हैं ।
१.१५६-५८ प्राकृत में ओ स्वर होता है । तथापि कुछ संस्कृत शब्द प्राकृत में आते समय उनके ओ में कभी विकार होते हैं । वे विकार इन सूत्रों में कहे हुए हैं । १·१५६ अग्नुन्नं, पउट्ठो, आउज्जं -- इन शब्दों में से ओ सूत्र अनुसार ह्रस्व होता है; अनन्तर ह्रस्वओ के स्थान पर हम्व उ लिखा पवट्ठो,आवज्जं-यहाँ क औरत का व हुआ है ।
१९८४ के
जाता है ।
१·१५९*६४ औ स्वर प्राकृत में नहीं है । प्राकृत में "ओ से होने वाले वर्णान्तर इन सूत्रों में कहे हुए है ।
१९५६ जोव्वणं - यहाँ के द्वित्व के लिए सूत्र २०१८ देखिए ।
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१·१६० सुंदेरं — सूत्र २०६३ देखिए । सुंदरिअं - - सूत्र २१०७ देखिए । सुन्दरं सुद्धोअणी - इन शब्दों में औ का ओ हुआ है ( सूत्र १-१५९ ! आगे
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