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टिप्पणियाँ
परिमाप वाचक तद्धित प्रत्यय है । एत्तिअ - इस रूप के लिए सूत्र २ १५७ देखिए । मात्र - शब्दे - केवल किंवा । सिर्फ अर्थ दिखाने वाला मात्र शब्द है ।
१९८२ अल्ल - - मराठी में:-ओल, ओला । १८४ दीर्घस्य
वह दीर्घस्वर ह्रस्व होता है । अहरुट्ठ - ए और ओ स्वरों के
वे
""ह्रस्वो भवति - दीर्घ स्वर के आगे संयुक्त व्यञ्जन होने पर, प्राकृत में यह एक महत्त्वपूर्ण नियम है । नरिन्दो, आगे संयुक्त व्यञ्जन आने पर, ह्रस्व ए और ओ के स्थान पर अनेकदा अनुक्रम से ह्रस्व इ और हैं । अतएव यहाँ नरिन्दो, अहरुट्ठ रूप दिए हैं। आयास ( आकाश ) - यहां संयुक्त व्यञ्जन न होने से, दीर्घस्वर ह्रस्व होने का प्रश्न निर्माण नहीं होता है । ईसर-ईश्वर शब्द में से संयुक्त व्यञ्जन के एक अवयव का लोप हुआ और पिछला दीर्घ स्वर वैसा ही रह गया । ऊसव - ( उत्सव - उस्सव - ऊसव ) यहाँ संयुक्त व्यञ्जन के एक अवयव का लोप होने पर, पिछला स्वर दीर्घ हुआ है ।
१.८८ हलद्दी -- मराठी में: - हवदी, हवद । बहेडओ - मराठी में बेहडा । पथिशब्द ' ...भविष्यति हेमचंद्र के मतानुसार पन्थ शब्द भी संस्कृत में है; वह पथिन् शब्द का समानार्थक है; और उस शब्द से 'पत्थं किर देसित्ता' में से पंथ शब्द द्वितीया एकवचन का रूप है ।
ह्रस्व होते हैं । इन ह्रस्त्र उ लिखे जाते
१९८६ सदिल - - मराठी में सढक | निर्मित शब्दे" • सिद्धेः - निम्मिअ और निम्मा अ शब्द निर्मित शब्द में इ का विकल्प से आ होकर बने हुए हैं क्या इस प्रश्न का उत्तर यहाँ है ।
१९२ जीहा - सूत्र २५७ के अनुसार जिह्वा शब्द का वर्णान्तर जिब्भा हुआ; अनन्तर ब् का लोप होकर जीभा; बाद में सूत्र १९८७ नुसार भ का ह होकर जोहा शब्द बना, ऐसा भी कहा जा सकता है ।
१·६३ निर् उपसर्गस्य- निर् उपसर्ग का जिन अव्ययों का धातु से योग होता है उन्हें उपसर्ग कहते हैं । उपसर्ग धातु के पीछे जोड़े जाते हैं । प्र, परा, सम्, अनु, अव, निर्, दुर्, अभि, वि, अधि, अति इत्यादि उपसर्ग होते हैं । निस्सहाइँ - सूत्र ३°२६ देखिए ।
१९४ नावुपसर्गे - नि उपसर्ग में । णुमज्जइ - यह शब्द निमज्जति शब्द का वर्णान्तर है । (मज्ज ऐसा नि + सद् धातु का आदेश भी है। सूत्र ४°१२३ देखिए ) | १·३५ उच्छू – मराठी में ऊस ।
१९६ जहुट्ठलो जहिट्ठिलो - र् के लू के लिए सूत्र १*२५४ देखिए । १·९७ कृग् धातोः -- कृ धातु का ।
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