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प्राकृतव्याकरण- प्रथमपाद
समास में किमान दो पद होते हैं । समास में से पहले पद का अन्त्य दीर्घ किंवा ह्रस्व स्वर बहुलत्व से ह्रस्व अथवा दीर्घ होता है । उदा० - अन्तावेई समास में, अन्त इस पहले पद का अन्त्य स्वर दीर्घ हुआ है । सत्तावीसा इस समास में भी यही प्रकार है । वारीमई - वारिणि मतिः यस्य सः, अथवा वारि इति मतिः ।
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१५ संस्कृतोक्तः संधिः सर्वः - प्राकृत में विसर्ग नहीं है तथा व्यञ्जनान्त शब्द नही है । इसलिए उनकी संधियों का स्वतंत्र विचार प्राकृत में नहीं है । अतः केवल स्वर - संधि का विचार आवश्यक है । संधि -- जिनका परम निक्ट सांनिध्य हुआ है ऐसे वर्णों का संधान / मिलाप यानी संधि । पदयोः -- दो पदों में । विभक्ति प्रत्यय अथवा धातु को लगने वाले प्रत्यय लगकर बना हुआ शब्द यानी पद । उदा० - रामेण: करोति । वासेसी शब्द में वास में से अन्त्य अ और अगला इ, विसमायवों शन्द में विसम शब्द में से अन्त्य अ और अगला आ, दहीसरो शब्द में दहि शब्द में से अन्त्य इ और अगला ई, और साऊ अयं शब्द में सा उ शब्द में से अन्त्य उ और अगला उ, इनकी संधि हुई है । दहीसरो -- दधिप्रधान: ईश्वरः । व्यवस्थितविभाषया-विभाषा यानी विकल्प । अब, जिसके लिए विकल्प कहा है, उसके सर्व उदाहरणों को लागू न पड़ते केवल कुछ उदाहरणों को निश्चित रूप से लागू पड़ने वाला और कुछ उदाहरणों को अवश्य रूप से लागू न पड़ने वाला विकल्प यानी व्यवस्थित विभाषा । बहुलाधिकारात् - बहुल का अधिकार होने से
काही — काहिइ शब्द में
बहुल के लिए १०२ सूत्र के ऊपर की टिप्पणी देखिए । 'हि' में से इ और अगला इ इनकी संधि 'ही' ऐसी हुई । काहिइ रूप के लिए सूत्र ३१६६ देखिए । बीओ - बिइओ शब्द में से 'बि' में से इ और अगला इ इनकी 'बी' ऐसी संधि हुई है ।
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१.६ इवर्णस्य उ वर्णस्य – ये शब्द सूत्र में से युवर्णस्य शब्द का अनुवाद करते हैं । इवणं यानी इ और ई ये वर्णं । उवर्णं यानी उ और ऊ ये वर्ण । अस्वेवर्णे परेविजातीय ( अस्व ) वर्ण ( यहाँ स्वर ) आगे होने पर । अ आ इ ई और उ-ऊ ये सजातीय स्वरों के युगुल हैं और वे परस्पर में विजातीय होते हैं । उदा० अ और विजातीय होते हैं । अब दिए हुए उदाहरणों में:-वि अवपासो और वंदामि अज्जं यहाँ पिछले इ और अगले अ की संधि नहीं हुई है । श्लोक १ – दानव - श्रेष्ठ के खून से लिप्त हुआ और नाखुनों के प्रभा-समूह से अरुण हुआ विष्णु, संध्या ( -रूपी ) वधू से आलिगित और बिजली के निकट संबंध में होने वाले नूतन मेह जैसा, शोभा देता है । इस श्लोक में, सहइ और उइन्दो, ०प्पहावलि और अरुणो०, वहु और अव ऊढो शब्द समूह में पिछले और अगले विजातीय स्वरों की संधि नहीं हुई है श्लोक २- उदर में छिपे हुए रक्त कमल के पीछे लगे हुए भ्रमरों के पंक्ति-समान । इस श्लोक पंक्ति में, गूढ़ और उअर इनकी गूढोअर और तामरस तथा अणुसारिणी
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