________________
२९४
चतुर्थः पादः अपभ्रंश भाषा में, किल इत्यादि ( शब्दों ) को ( मानी किक अपवा दिवा, सह, और नहि इनको ) किर इत्यादि ( यामी किर, अहवइ, दिवे, सहुँ और नाहिं ऐसे ) आदेश होते हैं । उदा०-किल को किर ( आदेश ):-किर न .."अडउ ॥ १ ॥ अथवा को अहवइ (भादेश ):-अहवइ......'खोहि ॥ प्रायः का अधिकार होने से ( अथवा शब्द का कभी अहवा ऐसा भी वर्णान्तर होता है । उदा०-) जाइज्जइ... निवाण ॥ २ ॥ दिवा को दिवे ( आदेश ):-दिवि........ पहाण । सह को सहूँ ( आदेश ):-जउ पवसंत......'जणस्सु ॥३॥ नहि को नाहिं ( आदेश ):-एत्तहे... बोहट्टइ ॥ ४॥
एम्वहिं पच्चालिउ एत्तहे ॥ ४२० ॥ अपभ्रशे पश्चादादीनां पच्छइ इत्यादय आदेशा भवन्ति । पश्चातः पच्छइ। पच्छइ होइ विहाणु ( ४.३६२.१ ) । एवमेवस्य एम्वइ । एम्वइ सुरउ समत्तु ( ४.३३२.२)। एषस्य जिः।
जाउ म जन्तउ पल्लवह देक्खउँ कइ पय देइ।
हि अइ तिरच्छी हउँ जि पर पिउ डम्बरई करेइ ॥१॥ इदानीम एम्वहिं।
हरि नच्चाविउ पंगणइ विम्हइ पाडिउ कोउ।
एम्वहिं राहप ओहरहं जं भावइ तं होउ ॥ २ ॥ प्रत्युतस्य पञ्चलिउ।
सावस लोणी गोरडी नवखी कवि विसगण्ठि ।
भडु पञ्चलिउ सोमरइ जासु न लग्गइ कण्ठि ॥ ३ ॥ इतस एत्तहे । एत्तहे मेह पिअन्ति जलु ( ४.४१६.४ )।
अपभ्रंश भाषा में, प्रश्चात् इत्यादि ( यानी पश्चात्, एवमेव, एव, इदानीम्, प्रत्युत और इतस् इन मन्दों ) को पच्छइ इत्यादि ( यानी पच्छइ, एम्वइ, नि, एम्वहि, पञ्चलिउ और एतहे ऐसे ये) आदेश होते हैं । उदा०-पश्चात् को पच्छइ (आदेश):पच्छा ....."विहाण । एवमेव को एम्वइ ( आदेश ):-एम्बइ"...समत्त । एष को १. यातु मा मान्तं पल्लवत द्रक्ष्यामि कति पदानि ददाति ।
हृदये तिरश्चीना बहमेव परं प्रियः आडम्बराणि करोति ॥ २. हरिः नर्तितः प्राङ्गणे विस्मये पातितः लोकः । ___ इदानीं राधापयोधरयोः यत् (प्रति ) भाति तद् भवतु ॥ ३. सर्वसलावण्या गौरी नवा कापि विषग्रन्थिः ।
भटः प्रत्युत स म्रियते यस्य न लगति कण्ठे ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org