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प्राकृतव्याकरणे
हुल्लडड (उल्लअड) - सामिपसाउ "नोसासु ॥ १ ॥ ; यहाँ ( = इस उदाहरण में), ( बाहुबलुल्ला शब्द में ), 'स्यादौ दीर्घ ह्रस्वो' सूत्र के अनुसार, द्वितीया एक वचन में ( अन्त्य ह्रस्व स्वर का ) दीर्घस्वर हुआ है । - बाहु-बलुल्लडड ( ऐसा भी होगा ); यहाँ ( = इस शब्द में ) ( उल्ल, अड और अ इन ) तीनों प्रत्ययों का संयोग है ।
इसी प्रकार
स्त्रियां तदन्ताड्डीः || ४३१ ॥
अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानेभ्यः प्राक्तन - सूत्र - द्वयोक्त-प्रत्ययान्तेभ्यो डीः प्रत्ययो
भवति ।
पहिआ। दिट्ठी गोरडी दिट्ठी मग्गु निअंत |
अंसूसासे हि कञ्चुआ तिन्तुव्वाण करन्त ॥ १ ॥
एक्क कुडल्ली पहि" रुद्धी ( ४.३७१.१ ) ।
अपभ्रंश भाषा में, पीछले दो सूत्रों में ( = ४२९-४३० में ) कहे हुए प्रत्ययों से अन्त होनेवाले ( और ) स्त्रीलिंग में होनेवाले शब्दों के आगे डित् ई प्रत्यक्ष आता है । उदा० - पहिआ ....करन्त ॥१॥; एक्क " रुद्धी ।
आन्तान्ताड्डाः ।। ४३२ ॥
३०३
अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानादप्रत्ययान्तप्रत्ययान्तात् हा प्रत्ययो भवति । ड्यपवादः ।
पिउ आइउ सुअ वत्तडी झुणि कन्नडइ पइट्ठ ।
तहो" विरहो नासन्तअहो धूलडिआ वि न दिट्ठ ॥ १ ॥
अपभ्रंश भाषा में, प्रत्ययों से अन्त होनेवाले अथवा प्रत्ययों से अन्त न होनेवाले (तथा) स्त्रीलिंग में होनेवाले शब्दों के आगे डित् आ (डा) प्रत्यय आता है । (स्त्रीलिंग में होनेवाली संज्ञाओं को ) डित् ई ( डी ) प्रत्यय लगता है ( सूत्र ४४३१ देखिए ) इस नियम का अपवाद प्रस्तुत नियम है । उदा० – पिउ आइउन दिट्ठ ॥१॥ अस्येदे ।। ४३३ ।।
अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानस्य नाम्नो यो कारस्तस्य आकारे प्रत्यये परे इकारो भवति । धूलडिआ वि न दिट्ठ ( ४.४३२.१ ) । स्त्रियामित्येव । झुणि कन्नडइ पइट्ठ ( ४.४३२.१ ) ।
१. पथिक दृष्टा गौरी EST
मार्गमवलोकयन्ती ।
अश्रूच्छ्वासैः कञ्चुकं तिमितोद्वानं (= आर्द्रशुष्कं ) कुर्वती ॥
२. प्रियः मायातः श्रुतावार्ता ध्वनिः कर्णे प्रविष्टः ।
तस्य विरहस्य नश्यतः
धूलिरपि न दृष्टा ॥
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