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चतुर्थः पादः
सिरि जर खण्डी लोअडी गलि मणियडा न वीस ।
तो वि गोठडा कराविआ मुद्धएँ उट्ठबईस ॥ ४ ॥ इत्यादि । अपभ्रंश भाषा में, हुहुरु इत्यादि । शब्द ) शब्दानुकरण दिखाने के लिए, और धुग्ध इत्यादि ( शब्द ) चेष्टानुकरण दिखाने के लिए अनुक्रम से प्रयुक्त करे । उदा०-- मई....."झडत्ति ।।१।। ( सूत्र में ) आदि शब्दों के निर्देश के कारण ( इस प्रकार के अन्य शब्दानुकारी शब्द जानना है । उदा०-- ) खज्जइ.....'नयणोहि ॥ २ ॥ इत्यादि । (धुग्ध का उदाहरण ):--अज्जवि .''देइ ।।३।। (सूत्र में) आदि शब्द के निर्देश के कारण ( इती प्रकार के अन्य चेष्टानुकरणी शब्द जानना है। उदा०-- ) सिरि...'' उट्ठबईस ॥४॥ इत्यादि ।
धइमादयोनर्थकाः ॥ ४२४ ॥ अपभ्रंशे घइमित्यादयो निपाता अनर्थकाः प्रयुज्यन्ते ।
अम्मडि पच्छायावडा पिउ कलहि अउ विआलि ।
घई विवरीरी बुद्धडी होइ विणासहो कालि ॥ १ ॥ आदिग्रहणात् खाई इत्यादयः ।
अपभ्रंश भाषा में, घई इत्यादि निपात निरर्थक ( विशेष अर्थ अभिप्रेत न होते) प्रयुक्त किए जाते हैं। उदा. --अम्महि... कालि ॥१॥ ( सूत्र में ) आदि शब्द के निर्देष के कारण खाई इत्यादि शब्द भी ( निरर्थक प्रयुक्त किए जाते हैं ऐसा जानना है)।
तादर्ये केहि-तेहि-रेसि-रेसिं-तणेणाः॥ ४२५ ॥ अपभ्रंशे तादर्से द्योत्ये केहि तेहिं रेसि रेसिं तणेण इत्येते पञ्च निपाताः प्रयोक्तव्याः ।
ढोल्ला ऍह परिहासडी अइ भण कवणहि देसि ।
हउँ झिज्जङ तउ केहि पिअ तुहुँ पुणु अन्नहि रेसि ॥ १ ॥ एवं तेहि-रेसिभावुदाहायौं । वड्डत्तणहों तणेम (४.३६६.१) । १. शिरसि जराखण्डिता लोमपुटी (कम्बल) गले मणयः म विंशतिः ।
ततः अपि (तथापि) गोष्ठस्थाः कारिताः मुग्धया उत्थानोपवेशनम् ।। २. अम्ब पश्चात्तापः प्रियः कलहायितः विकाले ।
घई (नून) विपरीता बुद्धिः भवति विनाशस्य काले ।। ३. विट एष परिहास: अथि भण कस्मिन् देशे।
अहं क्षीणा तव कृते प्रिय त्वं पुनः अन्यस्याः कृते ।।
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