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प्राकृतव्याकरणे
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शकारश्च भवति । र । नले। कले। स । हंशे । शुदं । शोभणं । उभयोः । शालशे । पुलिशे।
लहश-वश-नमिल-शुल-शिल-विअलिद-मन्दाल-लायिदंहि-युगे । वीलयिणे पक्खालदु मम शयलमवय्य-यम्बालं ॥१॥
मागधी भाषा में, रेफ के और दन्त्य सकार के स्थान पर अनुक्रम से लकार मीर तालव्य शकार होते हैं। उदा.--र ( के स्थान पर):--नले, कले। स (के स्थान पर :-- ) हंशे... .. शोभणं । दोनों के ( स्थान पर):--शालशे, पुलिशे । ( तथंव :-- ) लहशवथ... .यम्बालं।
सषोः संयोगे सोग्रीष्मे ॥ २८९ ।। मागध्यां सकार-षकारयोः संयोगे वर्तमानयोः सो भवति ग्रीष्मशब्दे तु न भवति । ऊवं लोपाद्यपवादः। स । 'पस्खलदि हस्ती। बुहस्पदी । मस्कली। विस्मये । ष । शुस्क'-दालं । कस्टं। विस्नं । शस्प-कवले। उस्मा। निस्फलं । धनुस्खण्डं अग्रीष्म इति किम् । गिम्ह-वाशले।
मागधी भाषा में, संयोग में होने वाले सकार और षकार ( इन ) का स होता है; परन्तु पोष्म शब्द में मात्र (ष का स ) नहीं होता है। प्रथम होने वाले (स् और ष् इन ) को लोप होता है ( सूत्र २.७७ देखिए ) इत्यादि (नियमों ) का अपवाद प्रस्तुत नियम है। उदा.---स ( का स ):--पक्खलदि... .. "विस्मये । ष ( का स ) :--शुस्कदालं.. .''धनुस्खण्डं । ग्रीष्म शब्द में (ष का स ) नही होता है ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण ग्रीष्म शब्द में आगे दिया हुआ वर्णान्तर होता है । उदा०-- ) गिम्ह-वाशले ।
ष्ठयोस्टः ।। २९० ॥ द्विरुक्तस्य टस्य षकाराकान्तस्य च ठकारस्य मागध्यां सकाराक्रान्तः १. क्रम से :--नर । कर । २. क्रम :--हंस । श्रुत । शोभन । ३. क्रम से :--सारस । पुरुष । ४. रभसवश-नमनशल-सुर-शिरस-विगलित-मन्दार-राजित-अंधि-युगः । वीर-जिनः
प्रक्षालयतु मम सकलं अवद्य-जम्बालम् ॥ ५. क्रम से :--प्रस्खलति हस्ती । बृहस्पति । मस्करिन् । विस्मय । ६. क्रम से :--शुष्क दारु। कष्ट । विष्णु । शष्प-कवल । ऊष्मा । निष्फल ।
धनुष्खण्ड । ७. ग्रीष्म-वासर।
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