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प्राकृतव्याकरणे
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अबम्हनं । पुज्ञाहं । पुरं । ज्ञ। पाविशाले। शत्वने । अवम्ञा । ख। अञली । धणञए । पञले।
मागधी भाषा में, न्य, ण्य, ज्ञ और अ इनका द्विरुक्त ब ( = ञ्ज) होता है। उदा०--न्य ( का ञ ):--अहिम .....'वलणं । ण्य ( का अ ):---पुञ्जवन्ते... पुझं । ज्ञ ( का ज ):--पाविशाले . . . . 'अवज्ञा । ञ्ज ( का ज):--अञ्जली ..... पञ्जले ।
व्रजो जः ।। २९४ ।। मागध्यां व्रजेजंकारस्थ यो भवति । बापवादः । वअदि ।
मागधी भाषा में, व्रज् (धातु ) में से जकार का होता है। ( जकार का ) य होता है ( सूत्र ४.२९२ देखिए ) इस नियम का अपवाद प्रस्तुत नियम है । उदा.--वआदि ।
छस्य चोनादौ ॥ २९५ ॥ मागध्यामनादौ वर्तमानस्य छस्य तालव्य-शकाराक्रान्तश्चो भवति । गश्च' गश्च । उश्चलदि पिश्चिले। पुश्वदि । लाक्षणिकस्यापि। आपन्न-वत्सल: आवन्नवश्चले । तिर्यक् प्रेक्षते तिरिच्छि पेच्छइ, तिरिश्चि पेस्क दि । अनादाविति किम् । 'छाले ... मागधी भाषा में, अनादि होने वाले छ का तालव्य शकार से युक्त च ( = श्च ) होता है। उदा.--गश्च । .."पुश्चदि । व्याकरण नियमानुसार आने वाले (छ) का भी ( श्च होता है । उदा०... ) आपन्नवत्सलः . . 'पेस्कदि । अनादि होने वाले (छ का ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण छ आदि हो, तो श्च नहीं होता है । उदा०-- ) छाले।
क्षस्य कः ॥ २९६ ॥ मागध्यामनादौ वर्तमानस्य क्षस्प को जिह्वामूलीयो भवति । “य के । ल-कशे । अनादावित्येव । खय-यलहला क्षय-जलधरा इत्यर्थः । १. क्रम से :--प्रज्ञाविशाल । सर्वज्ञ । अवज्ञा। २. क्रम से :--अञ्जलि । धनञ्जय । प्राञ्जलि | प्राञ्जल । ३. क्रम से :--गच्छ गच्छ । उच्छलति । पिच्छिल: । पृच्छति ॥ उच्छलति के लिए
सूत्र ४.१७४ देखिए। ४. छाग ।
५. क्रम से:--यक्ष । राक्षस ।
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