________________
२५८
चतुर्थः पादः
आमन्त्रये । ढोल्ला' मइँ तु वारिया मा कुरु दीहा माणु । निद्दए गमिही रत्तडी दडवड होइ विहाणु ॥ २ ॥ स्त्रियाम् ।
मा करु वङ्की दिट्ठि ।
बिट्टीए मइ भणिय तु पुत्ति सकण्णी भल्लि जिवें मारइ हिअइ पइट्ठि ॥ ॥ जसि ।
एइति घोडा एह थलि राइ निनिसिआ खग्ग ।
एत्थ मुणीसिम जाणि अइ जोन वालइ वग्ग ॥ ४ ॥ एवं विभक्त्यन्तरेष्वप्युदाहार्यम् ।
अपभ्रंश भाषा में, विभक्ति प्रत्यय आगे होने पर, संज्ञा के अन्त्य स्वर का दीर्घ और ह्रस्व स्वर प्रायः होता है । उदा०-पि ( प्रत्यय ) आगे होने पर :- ढोल्ला.. दिण्णी ॥ १ ॥ संबोधन में:- ढोल्ला मइँ विहाणु ॥ २ ॥ स्त्रीलिंग में :- बिट्टीए " पट्टि || ३ || जस (प्रत्यय) आगे होने पर : - एइति विभक्तियों के बारे में भी उदाहरण लेना है ।
वग्ग ||४|| इसी प्रकार अन्य
स्यमोरस्योत् ।। ३३१ ॥
अपभ्रंशे अकारस्य स्यमोः परयोः उकारो भवति ।
दहमुहु भुवणभयंकरु तोसिअसंकरु णिग्गउ रहवरि चडिअउ । चहु छंमुह झावि एक्कहि लाइव णावइ दइवें घडिअउ ॥ १ ॥
अपभ्रंश भाषा में, सि और अम् ( प्रत्यय ) आगे होने पर, ( शब्द में से अन्त्य ) अकार का उकार होता है । उदा०-- - दहमुहु • वडिअउ ॥ १॥
सौ पुंस्योद्वा ॥ ३३२ ॥
अपभ्रंशे पुल्लिङ्गे वर्तमानस्य नाम्नोकारस्य सौ परे ओकारो वा भवति । १. विट मया त्वं वारितः मा कुरु दीर्घ मानम् । निद्रया गमिष्यति रात्रिः शीघ्रं ( दडवड ) भवति विभातम् ॥ २ ॥ २. पुत्रि (बिट्टीए) मया भणिता त्वं मा कुरु वक्र दृष्टिम् ।
पुत्रि सकर्णा भल्लिग्रंथा मारयति हृदये प्रविष्टा ॥ ३ ॥ ३. एते ते अश्वाः (घोडा) एषा स्थली एते ते निशिताः खड्गाः । अत्र मनुष्यत्वं (पौरुषं) ज्ञायते यः नापि वालयति वल्गाम् ॥ ४॥ ४. दशमुख : भुवनभयंकरः तोषितशंकरः निर्गतः रथवरे ( रथोपरि ) आरूढः ।
चतुर्मुखं षण्मुखं ध्यात्वा एकस्मिन् लगित्वा इव दैवेन घटितः ॥ १ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org