________________
२५६
चतुर्थः पादः
पन्थवो । धूली थूली । बालकः पालको । रभसः रफसो । रम्भा रम्फा । भगवती फक्वती । नियोजितम् नियोचितं क्वचिल्लाक्षणिकस्यापि । पडिमा इत्यस्य स्थाने पटिमा । दाढा इत्यस्य स्थाने ताठा ।
चूलिका पैशाचिक भाषा में ( व्यञ्जन के ) वर्गं में से तृतीय और चतुर्थं व्यजनों के स्थान पर ( उसी हो वर्ग में से ) आद्य और द्वितीय व्यञ्जन अनुक्रम से आते हैं । उदा० नगरम् - "नियोचितं । क्वचित् व्याकरण के नियमानुसार ( वर्णान्तरित शब्दों में ) आये हुए ( तृतीय और चतुर्थ ) व्यञ्जनों के बारे में भी ( ऐसा ही प्रकार होता है । उदा० ) ( प्रतिमा शब्द से बने हुए ) पडिमा शब्द के स्थान पर पटिमा ( और दंष्ट्र | शब्द से बने हुए ) दाढा शब्द के स्थान पर ताढा ( एसे रूप होते हैं ) । रस्य लो वा ॥ ३२६ ॥ चूलिकापैशाचिके रस्य स्थाने लो वा भवति ।
पनमथ' पनय - प्रकुपित-गोली चलनग्ग- लग्ग - पतिबिम्बं । तससु नख-तप्पनेसं एकातस-तनु-थलं लुद्दं ॥ १ ॥ नच्चन्त स य लीला - पातुक्खेदेन कम्पिता वसुथा । उच्छलन्ति समुद्दा सइला निपतन्ति तं हलं नमथ ॥
I
चूलिका पैशाचिक भाषा में, र् के स्थान पर लू विकल्प से आता है । उदा०पनमथ लुछं नच्चन्तस्स
नमथ ।
नादियुज्योरन्येषाम् || ३२७ ॥
चूलिका पैशाचिकेपि अन्येषामाचार्याणां मतेन तृतीयतुर्यय) रादौ वर्तमानयोर्युजि-धातौ च आद्यद्वितीयौ न भवतः । गतिः गती । धर्मः घम्मो | जीमूतः । जीमूतो । झर्झरः झच्छरो । डमरुकः । डमरुको । ढक्का ढक्का । दामोदरः दामोरो । बालकः बालको । भगवती भकवती । नियोजितम् नियोजितं ।
चूलिका पैशाचिक भाषा में भी, अन्य आचार्यों के मतानुसार, आदि होने वाले, ( व्यञ्जनों के वर्ग में से ) तृतीय और चनुर्थ व्यञ्जनों के स्थान पर, तथैव यज् धातु में, । उसी हो वर्ग में से ) आद्य और द्वितीय व्यञ्जन नहीं आते हैं । उदा० -- गतिः' नियोजितं ।
रुद्रम् ॥ १ ॥
१. प्रणमत प्रणय - प्रकुपित-गौरी- वरणाग्र लग्न- प्रतिविम्बनम् । दशसु नव-दर्पणेषु एकादश-तनु[धरं २. नृत्यतः च लोला- पादोत्क्षेपेण कम्पिता उच्छलन्ति समुद्राः शैलाः निपतन्ति तं हरं
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
वसुधा । नमत ॥ २ ॥
www.jainelibrary.org